शंका- वेदों की क्या आज के काल में प्रासंगिकता हैं

शंका- वेदों की क्या आज के काल में प्रासंगिकता हैं


                 शंका- वेदों की क्या आज के काल में प्रासंगिकता हैं क्यूंकि आज किसी कि भी वेदों को पढ़ने में विशेष रूचि नहीं हैं। यहाँ तक वेद को पढ़े तो अत्यंत रूखे लगते हैं।  


                 समाधान- आप पानी तभी पीते हैं जब आपको प्यास लगती है। अगर आप को प्यास नहीं है तो चाहे कितने भी पानी के गिलास आपके सामने रख दिए जाये आपको पानी पीने की कोई इच्छा नहीं होगी। अगर आपको जोर से प्यास लगी हो तो पानी देखते ही आपकी ऑंखें चमक उठती है, मन आनंद से भर जाता है और पानी पीकर आपको तृप्ति का अनुभव होता है। इसी प्रकार से वेदों में रूचि भी उसी की बनती है जिसे आध्यात्मिक प्यास होती है। आज समाज में भोगवाद की लहर के चलते सभी भोग के साधन जुटाने एवं उनसे आनंद प्राप्त करने में मग्न है। इसलिए जीवन के उद्देश्य को जानने के लिए वेदों के ज्ञान को प्राप्त करने की आध्यात्मिक प्यास किसी को भी नहीं है। सांसारिक जगत की चकाचोंध के समक्ष मानव भूल गया है कि उसनें जन्म क्यों लिया है। इसी आध्यात्मिक प्यास को बनाये रखने के लिए ऋषियों ने घरों में संस्कार कराने का विधान रखा था। इसी आध्यात्मिक प्यास को बनाये रखने के लिए सन्यास आश्रम के माध्यम से विरक्ति का सन्देश दिया जाता था। इसी आध्यात्मिक प्यास को बनाये रखने के लिए विद्वानों का सत्संग और स्वाध्याय का प्रावधान बनाया गया था। मनुष्य जो बहुर्मुखी से अंतरमुखी बनाने का भी यही प्रयोजन था। संसार के भौतिक पदार्थ मनुष्य को अंतरमुखी से बहुर्मुखी बनाते है जबकि अध्यात्म मनुष्य को  बहुर्मुखी से अंतरमुखी बनाता है।  बहुर्मुखी व्यक्ति को वेदादि शास्त्र रूखे एवं अनावश्यक लगते है जबकि अंतरमुखी व्यक्ति वेदों की ज्ञान गंगा में बार बार डुबकी लगाना चाहता है। एक उदहारण लीजिये बचपन में जिस प्रकार रूचि लेने पर बड़ी से बड़ी गणित की समस्या को विद्यार्थी सुलझा लेता है।  उसी प्रकार अध्यात्म में रूचि लेने पर वेद विषय भी आसान हो जाता हैं। इसलिए यह कहना की वेद रूखे है, अप्रासंगिक है भ्रान्ति मात्र है क्यूंकि रूखे वेद नहीं अपितु रूखे व्यक्ति का  मानसिक चिंतन है। जिसमे ज्ञान रूपी बीज बंजर भूमि में वृक्ष नहीं बन पाता है।


डॉ विवेक आर्य


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