‘शहीद ऊधम सिंह जी की जयंती पर उनकी देशभक्ति के जज्बे को प्रणाम’


'शहीद ऊधम सिंह जी की जयंती पर उनकी देशभक्ति के जज्बे को प्रणाम'





ओ३म्


           आज देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले देशभक्त अमर शहीद श्री ऊधम सिंह जी की 116 वीं जयन्ती है। शहीद ऊधम सिंह जी ने मानवता के इतिहास की एक निकृष्टतम नरसंहार की घटना जलियावाला बाग नरसंहार काण्ड के मुख्य दोषी पजांब के तत्कालीन गर्वनर माइकेल ओडायर को लन्दन में जाकर 13 मार्च, सन् 1940 को गोली मार कर अपनी प्रतिज्ञा को पूरा किया था। देश की आजादी के दीवाने और भारत माता के वीर देशभक्त महान पुत्र शहीद ऊधम सिंह पर देश को गर्व है। आज का दिन देश के प्रति उनके जज्बे और कुर्बानी को याद करने व उससे प्रेरणा लेने का दिन है।


 


         शहीद ऊधम सिंह, पूर्वनाम शेर सिंह, का जन्म जिला संगरूर पंजाब के सुनाम स्थान पर 26 दिसम्बर, सन् 1899 को हुआ था। श्री चुहड़ सिंह उनके पिता थे जो रेलवे में नौकरी करते थे। आपकी माताजी का देहान्त सन1 1901 में आपकी 2 वर्ष की अवस्था में हो गया था। सन् 1907 में आपके पिता भी दिवगंत हो गये थे। आठ वर्षीय ऊधम सिंह जी व उनके भाई मुक्तासिंह का पालन अमृतसर के केन्द्रीय खालसा अनाथालय, पुतलीघर में हुआ जहां आप सन् 1919 तक रहे। 14 अप्रैल सन् 1919 को बैसाखी थी। इस दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में रालेट एक्ट के विरोध में सभा हुई जिसमें बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुष और बच्चे सम्मिलित थे। इस सभा में बिना किसी चेतावनी दिये अंहिसक व शान्त देशवासियों पर ब्रिगेडियर जनरल डायर के आदेशों से उनके सैनिकों ने अन्धाधुन्ध गोलिया चलाई जिससे वहां 379 लोग मरे तथा लगभग 1200 लोग घायल हो गये। सरदार ऊधम सिंह वहां अपने एक साथी के साथ लोगों को जल पिलाने का काम कर रहे थे। इस नरसंहार को आपने अपनी आंखों से देखा। इस घटना से 20 वर्षीय युवक ऊधम सिंह का खून खौल उठा। उन्होंने घायलों की सेवा की। वहां से बाहर निकाल कर उन्हें सेवा व राहत शिविरों में पहुंचाया। बाद में इस अमानवीय घटना से सन्तप्त उन्होंने प्रतीज्ञा की कि इस घटना के दोषी व्यक्ति को उसकी जान लेकर सबक सिखायेंगे। इसके बाद यही संकल्प इनके जीवन का लक्ष्य बन गया।


        अपनी शपथ वा प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए ऊधम सिंह जी लन्दन पहुंचे। वहां सौभाग्य से उन्हें अपना उद्देश्य पूरा करने का अवसर मिल गया। 13 मार्च, 1940 को लन्दन के कैक्सन हाल में ईस्ट इंडिया एसोसियेशन तथा केन्द्रीय एशियन सोसायटी की एक बैठक थी जिसमें माइकेल ओडायर को भाषण देना था। ऊधम सिंह जी ने अपनी रिवालवर को अपने कोट की जेब में छुपाया जो उन्हें मालिसियान पंजाब के श्री पूरन सिंह बोघन से मिली थी। इसके बाद वह कैक्सन हाल में प्रविष्ट हुए और वहां एक सीट पर बैठ गये। जैसे ही मीटिंग समाप्त हुई, सरदार ऊधम सिंह ने अपनी पिस्तौल से माइकेल ओडायर पर दो फायर किये जिससे वह वहीं पर ढ़ेर हो गये। इस घटना में माइकेल ओडायर के समीप विद्यमान तीन अन्य व्यक्ति भी घायल हुए। घटना के बाद ऊधम सिंह जी ने घटना स्थल से भागने का प्रयास नहीं किया, वह वहीं पर खड़े रहे और स्वयं को गिरफ्तार करा दिया। इस प्रकार उन्होंने 14 अप्रैल, 1919 को जालियावालां बाग नरसंहार की अमानवीय घटना का 21 वर्ष बाद बदला लेकर अमानवीय कार्य करने वाले शासक व शोषक लोगों को देशभक्तों की भावनाओं से परिचित कराया। हमें लगता है कि इस घटना का देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान है। इस घटना ने लन्दन में रह रहे अंग्रेजों को कुछ सोचने पर अवश्य मजबूर किया होगा।


         ऊधम सिंह जी की गिरफ्तारी के बाद उन पर मुकदमा चला। 1 अप्रैल, 1940 को औपचारिक रूप से उन पर माइकेल ओडायर की हत्या का आरोप स्थापित किया गया। जेल में रहते हुए उन्होंने 42 दिनों की लम्बी भूख हड़ताल भी की थी जिसे बलात् तोड़ा गया था। 4 जून से उन पर मुकदमा चला और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। ऊधम सिंह जी ने कोर्ट में अपने बयान में कहा था कि ''मैंने माइकेल ओडायर को मारा है क्योंकि मैं उनसे नफरत करता था। वह मेरे द्वारा की गई इस हत्या के पात्र थे। वह जलियावालां बाग नरसंहार के असली दोषी थे। उन्होंने मेरे देशवासियों की भावनाओं को कुचलाइसलिये मैंने उन्हें कुचल दिया। 21 वर्षों तक मैं उनसे जलियावालां बाग नरसंहार का बदला लेने का प्रयत्न करता रहा। मुझे प्रसन्नता है कि मैंने अपना काम पूरा किया। मुझे मौत का डर नहीं है। मैं अपने देश के लिए शहीद हो रहा हूं। ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत मैंने अपने देशवासियों को भूखे मरते देखा है। मैंने इसके विरुद्ध यह आपत्ति की हैयह मेरा कर्तव्य था। अपनी मातृभूमि के लिए मृत्यु का आलिंगन करने से बड़ा दूसरा और क्या सौभाग्य मेरे लिए हो सकता है?'


         ऊधम सिंह जी को 31 जुलाई, 1940 को पेण्टोविली जेल में फांसी दी गई और जेल में ही उन्हें दफना दिया गया। इस प्रकार भारतमाता का वीर सपूत देश की आजादी और भारतीयों के सम्मान के लिए शहीद हो गया। आज उनकी जयन्ती पर हम उन्हें अपनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हैं। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि इस देश के सभी नागरिक शहीद ऊधम सिंह जी व अन्य क्रान्तिकारियों जैसे हों जायें व भविष्य में भी ऐसे ही हों जिन्हें देश से उनके जैसा ही प्यार हो और उन्हीं की तरह से वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें।


मनमोहन कुमार आर्य



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