शास्त्र आदेश करते हैं राग में नहीं अनुराग में जीवन जीना चाहिए ।


शास्त्र उपदेश करते हैं राग में नहीं अनुराग में जीवन जीना चाहिए। किसी के प्रति राग उत्पन्न होता है तो वासना जन्म लेती है और किसी के प्रति अनुराग उत्पन्न होता है तो उपासना जन्म लेती है। सूर्पनखा भी प्रभु को पाना चाहती है और शबरी भी। एक राग से प्रभु को पाना चाहती है और एक अनुराग से।
सूर्पनखा राग और शबरी अनुराग है। रागी को प्रभु तक जाना पड़ता है और अनुरागी तक प्रभु स्वयं जाते हैं।
जब भी, जहाँ भी और जिसके भी प्रति राग होगा, तब, तहाँ और उसे मन भोगना चाहेगा। राग भोग को जन्म देता है और अनुराग योग को।
प्रभु मेरे हैं ये अनुराग और प्रभु मेरे लिए हैं यही राग है। ऐसे ही दुनियाँ की प्रत्येक वस्तु को अपना समझना अनुराग और अपने लिए समझना ही राग है।
*अपने लिए विमल यह दुनियाँ,*
*यही राग की प्रवृत्ति है।*
*पूरी दुनियां ही अपनों की,*
*अनुराग यही प्रभु भक्ति है।*
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