सत्यार्थ प्रकाश क्यों पड़े

*शंका :- प्रत्येक हिन्दू सत्यार्थ प्रकाश क्यों पढ़े ?* 


*समाधान :- क्योंकि हिन्दू अपने सत्य सनातन वैदिक धर्म की मूल जानकारी से रहित है । उसे जो ज्ञान है वह उड़ता उड़ता उपरी ज्ञानाभास मात्र है परन्तु उसके धर्म का शीश कहाँ है ? और पग कहाँ है ? उसे ये पता ही नहीं !! इसी जंजाल में हिन्दू उलझा हुआ हुआ है । हिन्दू समाज अपने उपास्य देव से अनभिज्ञ है, अपने धर्म शास्त्रों से अनभिज्ञ है और अपनी मूल ऋषि परम्पराओं से अनभिज्ञ है । हिन्दू अपने धर्म पर बात आते ही राम, कृष्ण, कालीमाता, सरस्वति, जगदम्बा आदि का स्मरण करने लगता है । उसके लिये धर्म का क्षेत्र मात्र इतना ही है । इसी कारण हिन्दू का टिकाव अपने मूल वैदिक धर्म पर स्थिर नहीं है । ऋषि दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश इसी भावना से किया कि सत्य का प्रकाश हो और असत्य का अँधकार हटे । सत्यार्थ प्रकाश सभी हिन्दुओ को इसलिये पढ़ना चाहिए क्योंकि ऋषि दयानंद जी ने वेद और वैदिक आर्ष ग्रंथों से सभी जीवनोपयोगी, अध्यात्मोपयोगी तत्वों को चुनकर पुष्पों की भांती पिरोकर इस महान ग्रंथ को लिखा है । जिसमें पहले १० समुल्लासों ( अध्यायों ) में वेद में वर्णित धर्म रूपी करने योग्य कर्मों की विधियाँ लिखी हैं । तांकि हिन्दू अपने प्राचीन गौरवशाली अतीत को फिर से प्राप्त कर ले । और ये तभी होगा जब हिन्दू समाज वही सब करने लगे जैसे कि उनके पूर्वज आर्य ऋषि किया करते थे ।*


 


 तभी ऋषि दयानन्द ने अत्यन्त दार्शनिकता, तर्क और विज्ञानसम्मत वेद की परम्पराओं को वेदमंत्रों और अन्य ग्रंथों के प्रमाणों से सिद्ध करते हुए लिखा है । जिसमें हमारे जीवन के १६ संस्कार गर्भाधान से लेकर अंत्येष्टि तक सभी की विधी को लिखा, परीक्षा करके पढ़ने और पढ़ाने का विधान लिखा, गौ रक्षा की बात कही, यज्ञ की महिमा बताई । इसी कारण हिन्दू इन सब लुप्त प्रायः हुई परम्पराओ को जाने और इनपर चलने को तैयार हो । 


इसी कारण हिन्दू समाज अपने धर्म को पहचान कर उसपर वैसे ही चले जैसे कि उसके पूर्वज चलते आए हैं । और सत्यार्थ प्रकाश के बाकी के चार अध्याय खंडन पर इसीलिये लिखे गए हैं तांकि हिन्दू भ्रमित होकर अपने मूल धर्म से भटककर इस्लाम, ईसाईयत, बौद्ध, जैन, नानकपंथ, दादुपंथ आदि में न फँस जाए । 


सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने के लाभ संक्षेप में नीचे लिखे जाते हैं :- 


-- वैदिक धर्म की संक्षिप्त और मुख्य मुख्य जानकारी हो जायेगी 
-- अपने पूर्वजों की गौरवशाली परम्पराएँ ज्ञात होंगी
-- मिलावटी और अँधविश्वासी कुरीतियों से पर्दा हटेगा 
-- धर्म को समझने के लिये तार्किक और विज्ञानप्रद बुद्धि विकसित होगी 
-- हिन्दू कभी धर्म के विषय में भ्रमित होकर यत्र तत्र नहीं भटकेगा 
-- संस्कृत भाषा के प्रति प्रेम बढ़ेगा 
-- मूल धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने की तीव्र इच्छा पैदा होगी 
-- कोई विधर्मी बहला फुसलाकर ईसाई, मुसलमान, नास्तिक आदि नहीं बना पायेगा 
-- कोई विधर्मी वैदिक धर्म पर कोई आक्षेप करेगा तो उसका प्रत्युत्तर हिन्दू के पास तैयार होगा 
-- ईश्वरोपासना में सच्चा प्रेम जगेगा और उपासना की योगविधि सीखने के लिये मन करेगा 
-- राष्ट्रप्रेम, स्वदेशीय भावना मन में तीव्र हो उठेगी 


और भी ऐसे अनेकों लाभ हैं जो सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने से होते हैं । इसी कारण हमारे स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल्ल, चन्द्रशेखर, भगत सिंह, लाला लाजपत राय आदि सत्यार्थ प्रकाश को पढ़कर इतने उग्र राष्ट्राभिमानी और संस्कृती के प्रति अत्यन्त संवेदनशील हो उठे थे जिससे कि वे देश को स्वतंत्र करवाने ही निकल पड़े थे । क्योंकि सत्यार्थ प्रकाश जो भी एकबार ध्यान से बुद्धि पूर्वक पढ़ता है उसके मन पर इसकी छाप अवश्य ही पड़ जाती है । 


केवल हिन्दू ही नहीं यदि कोई ईसाई,या मुसलमान भी सत्यार्थ प्रकाश को द्वेष भावना त्याग कर ध्यान से एकबार पढ़ ले तो ये सत्य उसके मन पर भी अंकित हो जाता है । क्या आप जानते हैं ?? बहुत से ऐसे ईसाई या मुसलमान जिन्होंने सत्यार्थ प्रकाश के १३वाँ समुल्लास ( ईसाईयत खंडन पर ) और १४वाँ समुल्लास ( इस्लाम खंडन पर ) है उसे पढ़कर अपने मूल वैदिक धर्म में लौट आए हैं । बहुत से मौलाना जो कि सत्यार्थ प्रकाश का खंडन करने की भूल कर बैठे परन्तु ऋषिदयानंद जी के अकाट्य तर्कों ने उनके मन पर वो छाप छोड़ी कि वे मौलाना इस्लाम छोड़कर शुद्धि करवाकर उलटा वैदिक धर्म के प्रचारक ही बन गए और हज़ारों की संख्या में अपनी बिरादरी के मुसलमानों को शुद्धि करवाकर उनको वैदिक धर्म में घर वापसी करवाई । ऐसा ही ईसाई पादरीयों के साथ हुआ वे भी पूरे जीजान से हिन्दुओं का ईसाईकरण करने की दृष्टि से सत्यार्थ प्रकाश के १३नें समुल्लास का खंडन लिखने की भूल कर गए लेकिन धीरे धीरे स्वयं ही वैदिक रंग में रंगे गए । 


यदि विधर्मी सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर वैदिक धर्म पर मर मिटने को तैयार हो सकते हैं तो अभागे हिन्दू क्यों नहीं ? इसलिये सभी हिन्दुओं को बुद्धिपूर्वक बिना किसी द्वेष भावना के सत्यार्थ प्रकाश जीवन में कम से कम एकबार अवश्य ही पढ़ना चाहिए । चाहे आपने सत्यार्थ प्रकाश के बारे में बहुत सी अलोचना सुनी हो परन्तु हम ये कहेंगे कि दूसरों से सुनने के बजाए आप स्वयं की बुद्धि का प्रयोग करें क्योंकि ईश्वर ने आपको भी विवेक करने के लिये बुद्धि दी है । दूसरों के बजाए अपने आप सही गलत का निर्णय करें । 


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