सर्दी
सर्दी से होके बेकार,
छोड़ दिया कारोबार,
तजें नहीं निज द्वार,
घरों में बैठे ठलुआ।।
कम्बल लपेटे हैं,
सारा दिन लेटे हैं,
माँ के प्यारे बेटे हैं,
खा रहे लेटे हलुआ।।
रजाई छोड़ जाते हैं,
दाँत किटकिटाते हैं,
व्यंजन नये खाते हैं,
मोटो भयो है कलुआ।।
मनुज महान बनो,
देश के जवान बनो,
चतुर सुजान बनो,
छानों ना व्यर्थ बलुआ।।