संयम और भोग में तुलना करें तो अधिक सुख संयम में या भोग में
संयम और भोग में तुलना करें तो अधिक सुख संयम में या भोग में
प्रश्न :- संयम और भोग में तुलना करें तो अधिक सुख संयम में है या भोग में है ?
उत्तर :- वास्तव में संयम और भोग की तुलना वही व्यक्ति कर सकता है जिसने संयम और भोग दोनों के सुख को प्राप्त किया हो
भोग के सुख तो साधारण से साधारण व्यक्ति भी ले सकता है और ले भी रहे हैं परंतु सयम का सुख कोई विरला ही ले पाता है और वही दोनों के सुख का तुलनात्मक अध्ययन कर सकता है |
संयम कभी बलात नहीं होता सहज होता है बलात किया गया संयम सुख नहीं दे पाता सहज संयम के लिए अंतर्मुखी होना आवश्यक है व्यक्ति शरीर वाणी एवं मन की चेष्टा के बाहरी विषयों से हटकर अंतः वृत्तिक हो जाता है तब उसे ईश्वर से सुख मिलने लगता है |
यदि व्यक्ति ऐसा नहीं करता तो इंद्रियां विषयों में बलात घसीट कर ले जाती हैं |
ऐसी स्थिति में यदि मन इंद्रियों के साथ लग जाए तो भोग की स्थिति पैदा हो जाती है जो सुख तो देती है परंतु परिणाम मे व्यक्ति सामर्थ्य हीनता की हानि उठा लेता शक्ति हीनता हमारे हर क्षेत्र में दुख का कारण बनती है |
इसमें एक विज्ञान और है यदि इंद्रियां बिना मन के बलात जा रही हो तो वह स्थिति भोग में नहीं आती वही समय है मन को ईश्वर में लगा लेने का क्योंकि इंद्रियों के पीछे पीछे मन भी दौड़ लेता है |
किसी सुंदर वस्तु को देखकर भोग और संयम दो प्रकार के विचार उभर सकते है वह हमारे ज्ञान पर है हम अधिकतर भोग का विचार उठा लेते हैं उस सुंदर वस्तु के साथ ईश्वर को जोड़कर विचारना अर्थात किसी ना किसी रूप में हर कृति का संबंध ईश्वर से है यह विचार हमारे मन को सयम में परिणत कर देता है |
जो हमारे सुख की स्थिति लगातार बनाएं रखता है |
कलम से....🖋 आचार्य धर्मपाल *स्रोत। - वेद।*
*लेखक - महर्षि दयानन्द स्वामी।*
*प्रस्तुति - *वेद वरदान आर्य*