संस्कार से ही बनती है, वृत्ति पर उपकार की।
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संस्कार से ही बनती है,
वृत्ति पर उपकार की।
जिनके बच्चे संस्कारी हैं
चिंता ना परिवार की।।
जिनको चाहिए हर सुख सम्पत्ति,
बच्चों को संस्कार दें।
स्वयं गठित हों आदर्शों से,
शुद्ध सरल व्यवहार दें।
जैसे दाल में हींग छौंक से,
दाल स्वाद बढ़ जाता है।
वैसे संस्कारों के छौंक से,
परिवार स्वर्ग बन जाता है।
जिनके घर में पंच यज्ञ,
में शामिल हो पूरा परिवार।
उस घर कभी न विपदा आये,
खुशियों का लगता अम्बार।
कहे *विमल* अपने बच्चों संग,
दान यज्ञ के कार्य करो।
गृह समाज राष्ट्र उन्नति हित,
सुसन्तति तैयार करो।।
-आचार्या विमलेश बंसल आर्या
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