संसार का अंतिम हिंदू एक गंभीर चेतावनी (भाग 6)

संसार का अंतिम हिन्दू:एक गंभीर चेतावनी



लेखक: पुरुषोत्तम योग 


 


       अंग्रेजो   के आने से पहले भारत में जनसंख्या गणना करने की कोई पद्धति भी नहीं थी। सन 1861 में पहली जन गणना हुई ,उस जन गणना में हिन्दू भारत में 85प्रतिशत थे।वर्ष 1941 के आते आते अर्थात 80वर्ष में भारत में हिन्दू मात्र 75%रह गए ।इसी समय में मुसलमान 19% से बढ़कर 24% हो गए।इसी प्रकार की बढ़ोतरी ईसाई समुदाय में भी हुई।फिर सन 1947 में भारत का बटवारा जो हिन्दू भारत एवम् मुस्लिम भारत के रूप में धर्म के आधार पर हुआ।जिन नदियों के तट पर बैठ कर  तुम्हारे ऋषियों ने वेदों की ऋचाएं लिखी थी और जिस तक्षशिला विश्व विद्यालय में तुम्हारे  महान अर्थ शास्त्री आचार्य चाणक्य  जी की कर्म स्थली  हुआ करती थीं और ,महर्षि पाणिनि की जन्मस्थली  थी वह सब मुस्लिम प्रांत बन गए ।98%मुसलमानों ने पाकिस्तान के पक्ष में वोट  देकर और एक मत होकर  पाकिस्तान बनाने की जिद करके  यह सिद्ध कर दिया था कि वह तुम हिन्दुओं के साथ सह- नागरिक बनकर  और भाई बनकर मिलजुल कर नहीं रह सकते। तुम्हारी हिन्दू जाति जिनको शूद्र कहती थी,उन्ही शूद्रों में से मेरे एक मनस्वी और तेजस्वी पुत्र भीम राव  अम्बेडकर जी ने तुम हिन्दुओं के अदूरदर्शी और भ्रमित हिन्दू नेताओ को बार बार चेताया था कि मजहब के नाम पर 98% मुसलमानों द्वारा पाकिस्तान की मांग उठाने के पश्चात मुसलमानों का हिन्दू बाहुल्य भारत में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है।


       यदि  वह भारत में रहे तो विभाजन से पूर्व की समस्याएं ज्यो की त्यो बनी रहेगी।किन्तु तुम्हारे पद लोलूप ,स्वार्थी लंपट किस्म के दंभी अभिमानी और अदूरदर्शी  हिन्दू नेताओ ने उसकी एक न मानी।उन्होंने पाकिस्तान गए हुए मुसलमानों से लौट आने की अनुनय विनय की।
       फल स्वरूप हिन्दू भारत में वही मुस्लिम समस्याएं फिर खड़ी हो गईं जो विभाजन के पहले से मौजूद थीं।अपने ही बनाए स्वप्नों में खोए तुम्हारे  हिन्दू नेता टूटे हुए कांच के टुकड़ों को गोंद लगा लगा कर जोड़ने के प्रयास करते रहे।
 उन प्रयासों की असफलता का दोष वह कभी कांच की कठोरता पर और कभी गोंद की चिपक की असफलता पर लगा कर रुदन करते रहे।
       1200वर्ष के अनुभव से वह कांच के कभी न जुड़ने वाले स्वभाव को क्यो नही समझ पाए????ऐसे मूर्ख हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज को तो नष्ट होना ही था।
हिन्दू भारत में हिन्दू का प्रतिशत सन 1951 इशवी में था 84% प्रतिशत जो सन 1971 में अर्थात केवल बीस वर्ष बाद,वह रह गया 80%।"
       यह सीधा सीधा गणित तुम्हारे किसी नेता की समझ में क्यों नहीं आया कि बूंद बूंद घटने पर समुन्द्र भी सुख सकता है।तुम अपने ही हिन्दू बाहुल्य भारत देश में चार प्रतिशत प्रति दस वर्ष की गति से कम होते जा रहे थे।और मुसलमान ईसाई लगभग  इसी चार प्रतिशत की गति से  प्रति  दस वर्ष बढ़ते जा रहे थे।
       संख्या की इस दौड़ में तुम उनसे चार प्रतिशत प्रति  दस वर्ष पिछड़ते जा रहे थे।इसी प्रकार ईसाईयों से भी।किन्तु तुम्हारी जाति का यह संख्या नाश तो केवल जन्म दर के कारण था।विधर्मी पास के विदेशी धरती बांग्लादेश  से चोरी छिपे तुम्हारी सीमाओं में घुसे चले आ रहे थे।तुम्हारे हिन्दू नेता व शासक और हिन्दू समाज इस चारो ओर से घिरती चली आ रही टिड्डी दल जैसी आपत्ति से कैसे आंखे मूंदे बैठे रहे???
       वह  संसार का भोला भाला अंतिम हिन्दू भगवान  की इन कटु बातो को सुनकर तिलमिला उठा।उसने हाथ उठा कर कहा
प्रभो!क्षमा करें।क्या" सर्व धर्म समभाव" और" सत्यमेव जयते" जैसे सिद्धांतो की संसार में घोषणा करने वाले  और उन पर आचरण करने वाले हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म को यू ही नष्ट हो जाना चाहिए था???कौन सा दूसरा समाज है और कौन सा दूसरा मजहब है जो इन" सर्व धर्म समभाव और सत्य मेव जयते" जैसे सिद्धांतो पर आचरण करना तो दूर,इनको मान्यता भी देता हो।"
       भगवान अपने उस अबोध  हिन्दू बालक पर करुणामयि दृष्टि डाल कर बोले
       हे वत्स! तुम्हारे हिन्दू धर्म और समाज जैसा भ्रमित समाज संसार में आज तक अन्य कोई दूसरा  न  कभी रहा न कभी रहेगा।तुम्हारे उपरोक्त दोनों ही थोथे सिद्धांत तुम्हारी हिन्दू जाति की मूर्खता के सबसे बड़े परिचायक हैं।
       धर्म में समानता कम है विरोध अधिक ।क्या तुम्हारे अतिरिक्त कोई भी  धर्म  दूसरे धर्म को आदर अथवा सम्मान योग्य घोषित करता है।कर भी नहीं सकता।अन्यथा उस धर्म के अस्तित्व की आवश्यकता ही क्या ???धर्म सबका एक होता है व अनेक?? जो कहो कि  अनेक धर्म  होते हैं तो एक दूसरे के विरुद्ध होते हैं व अविरुद्ध होते हैं???तुम कभी सिद्ध नहीं कर सकते कि धर्म अनेक होते हैं??धर्म तो मनुष्य मात्र के सब संसार के लिए एक  ही है ।अन्य सब तो मजहब और संप्रदाय है जो भले मनुष्यो को फसा कर अपना प्रयोजन सिद्ध करते हैं।
       ईसाई ,इस्लाम आदि मध्य एशिया   और अरब देशों में उत्पन्न मजहब प्राय: हिन्दू धर्म के सिद्धांतो के नितांत विपरीत सिद्धांत पर बल देते हैं।अरब देशों और मध्य एशिया के मुस्लिम देशों के लोग  जिन हिन्दू धर्म  संस्कृति और भारतीय दर्शन के सिद्धांतो को कुफ्र और मूर्खता की उपज समझते हैं उनको आदर कैसा???सब धर्मो को आदर देने की बात तो उनके लिए बिल्कुल असंभव सा प्रश्न है।
       अब सुनो सत्यमेव जयते का रहस्य।
        तुमने इसका अर्थ समझा की सत्य पक्ष  की सदेव विजय होती हैं,असत्य पक्ष की नहीं।इस कारण अपने पक्ष को सत्य मानकर तुम सदेव आश्वस्त होते रहे कि विजय तुम्हारी ही होगी।
       किन्तु इस उपनिषद वाक्य  का अर्थ यह नहीं है कि सत्य पक्ष की सदेव विजय होती है।इसका अर्थ यह है कि अर्थात"               सत्यमेव जयते "का अर्थ है कि सत्य सिद्धांत की सदेव विजय होती है,असत्य सिद्धांत की नहीं।
       जबकि सत्य सिद्धांत यह है कि -
1) बलवान की विजय होती हैं ,निर्बल की नहीं।
2)चातुर्य की विजय होती हैं ,मूर्खता की नहीं।
3)शौर्य की विजय होती है, कायरता की नहीं।
4)संगठित समाज की विजय होती हैं ,असंगठित समाज की नहीं।
5)अनुशासित सैन्य शक्ति की विजय होती हैं , अनुशाषण हीन सेना की नहीं ।
6)युद्ध में जो व्यक्ति जीत हासिल करता है ,वहीं इतिहास लिखता है ,कायर कभी इतिहास नहीं लिखा करते ।इतिहास हमेशा           विजेता लिखते है।और जो विजय होता है उसी का पक्ष सत्य मान लिया जाता है।इस कसौटी पर अपनी असफलताओं  को परखोगे तो तुम्हे  इस सत्य मेव जयते  सिद्धांत का वास्तविक अर्थ समझ में आ जाएगा।
       क्या तुमने कभी सोचा कि यदि सत्य पक्ष की ही  सदेव विजय होती तो तुम यवनों ,मुगलों और ईसाईयों से निरन्तर क्यो हारते रहे??क्या इससे  यह सिद्ध हो गया कि तुम्हारा पक्ष झूटा था और उनका सत्य???
       नहीं पुत्र नहीं!!! इस उपनिषद वाक्य का अर्थ यह नहीं है कि सत्य पक्ष की सदेव विजय होती हैं,असत्य पक्ष की कभी नहीं।
इसका अर्थ यह है कि-
       सत्य सिद्धांत की सदेव विजय होती हैं,असत्य सिद्धांत की नहीं।"
       मैंने कहा था की जो स्वयं अपनी रक्षा न कर सके उनकी रक्षा मै भी नहीं कर सकता।दुर्बल का मर जाना ही कल्याणकारी होता है, देवो दुर्बल: घातक: अर्थात देव भी दुर्बल  को ही मारता है"  ऐसा मेरा मत है।और यही वैदिक धर्म का  मूल सिद्धांत  है।
चर्चा अगले अंक में भी जारी रहेगी!!!


 


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