संध्या की समर्पण प्रार्थना

सभी को नमस्ते जी।
 आज संध्या के मंत्रों में समर्पण मंत्र का अवलोकन करेंगे।
 आइए इस पर विचार करते हैं।


हे ईश्वर दयानिधे!भवत्कृपयाSनेन जपोपासनादिकर्मणा धर्मार्थकाममोक्षणां सद्य: सिद्धिर्भवेन्न:।


भावार्थ - 
हे ईश्वर - हे ईश्वर!
दयानिधे - दया के सागर
भवत: - आपकी
कृपया - कृपा से
अनेन - इस
जपोपासनादिकर्मणा - जप, उपासना आदि कर्म के द्वारा
धर्मार्थकाममोक्षणाम् - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की
सद्य: - शीघ्र
सिद्धि - प्राप्ति 
भवेत् - होवे
न: - हमको


व्याख्या - इस प्रकार से अब तक के समस्त मंत्रों के द्वारा परमेश्वर की सम्यक उपासना करके, अब हम समर्पण करते हैं, कि हे प्रभु! आप दया के सागर हो, आपकी कृपा से जो जो उत्तम काम हम करते हैं, वह सब आपके अर्पण हैं। जिससे हम लोग आप को प्राप्त होकर धर्म - अर्थात जो सत्य न्याय का आचरण हैं।
अर्थ - जो धर्म से पदार्थों की प्राप्ति करना है।
 काम- जो धर्म और अर्थ से इष्ट भोगों का सेवन करना है। और
 मोक्ष -  जो सब दुःखों से छूटकर सदा आनंद में रहना है। इन चार पदार्थों की सिद्धि हमको शीघ्र ही प्राप्त हो।
वास्तव में यह वेद का मंत्र नहीं है। यह एक समर्पण वाक्य है जो महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने दिया है। समर्पण वाक्य में हम प्रभु से विनती करते हैं कि हे परमपिता परमात्मा! हे दयालु! हम प्रतिदिन प्रातः सायं आपकी स्तुति प्रार्थना उपासना करते हुए आप ही के बताए हुए मार्ग पर चलकर अपने दायित्व को निभाते रहे। मन वचन व कर्म से पवित्र कर्म करते हुए धर्म अर्थ काम और मोक्ष के पुरुषार्थ चतुष्टय की सिद्धि आज ही प्राप्त करें।
 'सद्य:' शब्द का यहां विशेष महत्व है। वह यह कि हम प्रभु से हमारी प्रार्थना तथा पुरुषार्थ चतुष्टय की सिद्धि आज ही हो ऐसी प्रार्थना कर रहे हैं। अर्थात् हम अपने पुरुषार्थ और प्रभु की कृपा के द्वारा इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं। क्योंकि यह मनुष्य जीवन दुर्लभ है। न जाने फिर कितने समय बाद हमें यह मनुष्य जीवन प्राप्त हो। इसीलिए इस वर्तमान जीवन के रहते ही हम प्रभु कृपा से अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं।
 अतः प्रतिदिन प्रभु आराधना में रत रहने का ही यहां अभिप्राय है। प्रतिदिन के किए कर्मों को प्रभु अर्पित करना और पवित्र प्रभु को पूजनीय परमपिता को पवित्र कर्म ही अर्पित किए जा सकते हैं अपवित्र नहीं अतः हमारे कर्म सदा पवित्र बने रहें इसी के लिए हमें सचेष्ट रहना है। यही समर्पण वाक्य का भाव है।
ओ३म्
   आर्य कृष्ण 'निवाड़ी'
          अध्यक्ष 
राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा
     जनपद गाजियाबाद
      ८९३७०७१८८२


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।