समय का वक्र तेवर है अभी तक

समय का वक्र तेवर है अभी तक
चुभाता दिल में नश्तर है अभी तक


अकेले ही सफर में तो चले हम
न कोई भी तो रहबर है अभी तक


वही दंगा वही हैं नफरतें भी 
वही तो हाल बदतर है अभी तक


लगे इल्जाम बेबुनियाद हम पर
कि रिश्वत खोर अफसर है अभी तक


शजर की छांव मे बचपन गुजारा
न काटो तुम वो मंजर है अभी तक


खुदा हैं वो करो तुम तो इबादत
पिता और मात से घर है अभी तक 


सदी बीती न मजनू आज बदले
वही लैला का चक्कर है अभी तक


न गालिब मीर सी  ही  शायरी है
नहीं  मीना सुखनवर है अभी तक


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