सदा मधुर वाणी बोलनी चाहिए

सदा मधुर वाणी बोलनी चाहिए

एक राजा अपने घुड़सवारों के साथ जंगल से गुजर रहे थे। राह में रास्ता भटक गए। प्यास लगने पर पानी की खोज में उन्होंने अपने घुड़सवारों को चारों दिशाओं में भेजा। एक सैनिक एक पानी के घड़े रखे हुए अंधे व्यक्ति के पास पहुँचता है और उससे पानी मांगने के लिए कहता है,"ए अंधे! देख नहीं रहा मैं प्यासा मर रहा हूँ।  मुझे पानी दे।" अंधे व्यक्ति ने सैनिक की बात को सुनकर अनसुना कर दिया। पीछे से राजा का सेनापति भी उस अंधे व्यक्ति के पास पहुँचता है और उससे पानी मांगने के लिए कहता है, अंधे बाबा! मुझे प्यास लगी हैं। मुझे पानी दो। अंधे व्यक्ति ने सेनापति की बात को सुनकर भी अनसुना कर दिया। पीछे से राजा भी उस अंधे व्यक्ति के पास पहुँचता है और उससे पानी मांगने के लिए कहता है, बाबा जी! मेरे प्राण प्यास के कारण निकले जाते है। कृपया मुझे पानी देकर मेरी प्राण रक्षा कीजिये। अंधे व्यक्ति ने राजा की बात को सुनकर उन्हें सहर्ष पानी पिला कर तृप्त कर दिया। राजा ने बाकि लोगों को पानी पिलाने का कारण उस अंधे व्यक्ति से पूछा। अंधे व्यक्ति ने उत्तर दिया। आपका सैनिक अपने सैनिक होने के अभिमान से ग्रस्त था। वह अन्य प्राणियों को अपने से नीचा समझता हैं। वह सहायता करने लायक नहीं है। आपके सेनापति के मन में कपट है। वह चापलूसी करके अपना काम निकालना जानता है। उससे अधिक अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए क्यूंकि वह अपने लाभ के लिए किसी का भी अहित कर सकता है। और आप राजन सभी प्राणी मात्र को एक सम दृष्टि से देखते इसलिए आपकी भाषा में मधुरता, सौम्यता और मीठापन हैं। राजा उस अंधे व्यक्ति की बात सुनकर तृप्त हुए।

हर व्यक्ति अपने लिए दूसरे मनुष्य द्वारा मीठी वाणी का उपयोग करने की अपेक्षा रखता है। मीठी वाणी से मनुष्य को सौ कार्य भी सिद्ध हो जाते है। कटु बोलने से बनते काम बिगड़ जाते है। वेद सामान्य जीवन में हर मानव को न केवल अन्य मनुष्य के लिए मीठी वाणी का उपयोग करने का सन्देश देते है अपितु ईश्वर के लिए भी स्तुति करते समय मधुर वाणी से स्मरण करने का सन्देश देते है। अथर्ववेद 20/65/2 में सन्देश दिया गया है कि है कि, "हे मनुष्यो दिव्य प्रकाश की किरणों के स्रोत्र, ज्ञान इन्द्रियों एवं कर्म इन्द्रियों को शक्ति देने वाले, आलोक में निवास कराने वाले, पापों और तापों के नाशक इन्द्र (ऐश्वर्या के स्वामी) रूपी ईश्वर के लिए घृत और मधु से भी अधिक स्वादु स्तुतिवचनों का प्रयोग करो"।

मनुष्य परमेश्वर को कब कब स्मरण करता है? एक जब वह सुख में हो, एक जब वह विपत्ति में हो। जब सुख में होता है तब बेमन से, माला फेरते हुए, ध्यान कहीं ओर रखकर ईश्वर का जाप करता है। और जब दुखी हो तो आपत्ति के उपाय के लिए अथवा कभी कभी कटु वचनों से ईश्वर का स्मरण करता हैं। ऐसी स्तुति फलदायक नहीं है। अपने मन को बाह्य जगत से हटाकर मधुर वाणी से ईश्वर के गुण गाओ। मधुर वाणी में ईश्वर की स्तुति करने वाले मनुष्य के गुण भी ईश्वर के समान दयालु और कल्याणकारी हो जाते हैं। इसलिए सदा मधुर वाणी बोलनी चाहिए।


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