रुक्मिणी विवाह (भाग 1)

रुक्मिणी विवाह      *भाग - 1*


लेखक - स्वामी जगदीश्वरानंद सरस्वती


विदर्भ देश के राजा भीष्मक बड़े ही कुलीन और बलशाली थे। उनकी पुत्री थी रुक्मिणी। वह कृष्ण के गुणों पर मुग्ध थी और तन, मन से उन्हें प्रेम करती थी। श्री कृष्ण भी उनके गुणों पर मुग्ध थे। राजा भीष्मक अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के साथ करना चाहते थे, परन्तु उनका पुत्र रुक्मी चेदिराज शिशुपाल के साथ रुक्मिणी का विवाह करना चाहता था। अन्त में रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के साथ होना निश्चित हुआ।
अब तो रुक्मिणी बहुत सिटपिटाई। वह तो अपने आपको श्रीकृष्ण के चरणों मे समर्पित कर चुकी थी। अतः  उसने एक वृद्ध ब्राह्मण के द्वारा अपना प्रणय निवेदन श्रीकृष्ण की सेवा में द्वारिका भेजा। श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी की यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। विवाह से एक दिन पूर्व वे विदर्भ देश की राजधानी कुण्डनपुर जा पहुँचे और नियत समय पर जब रुक्मिणी भ्रमणार्थ बाहर निकली तो श्रीकृष्ण उसका संकेत पाकर उसे रथ पर आरूढ़ कर द्वारिका को प्रस्थानित हुए। शिशुपाल ने कृष्ण पर आक्रमण किया, परंतु बलराम ने उन्हें मार भगाया। रुक्मी को पता लगा तो उसने भी श्रीकृष्ण का पीछा किया। वह श्रीकृष्ण के हाथों परास्त हुआ। श्रीकृष्ण उसे मारना ही चाहते थे, परन्तु रुक्मिणी के कहने पर छोड़ दिया।


 


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