रुक्मणी विवाह भाग 3

रुक्मिणी विवाह      *भाग - 3*


लेखक - स्वामी जगदीश्वरानंद सरस्वती


 भगवान कृष्ण एक आदर्श महामानव और नेता थे। वे जानते थे कि - 


*यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन: ।*
*स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ।।*
गीता ३/२१


श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करते हैं, अन्य लोग भी वैसा ही व्यवहार करते हैं, 


अत: वे ऐसा जघन्य-पाप और अन्याय-आचरण कैसे कर सकते थे।


*पुराण-लेखकों ने श्री कृष्ण के ऊपर बहु-विवाह तथा गोपियों के साथ विषय-भोग करने का दोष-आरोपण* किया हैं। ब्रह्मवैवर्त में बाणासुर के सुख से यहां तक कहलाया हैं - 


*साक्षाज्जारश्च गोपीनां दुष्ट परमलम्पट: ।*
*आगत्य मथुरां कुब्जां जघान मैथुनेन च ।।*
कृष्णजन्मखण्ड ११४/६१-६२


अर्थात - कृष्ण साक्षात जार, दुष्ट, तथा अति लम्पट थे। *आगे का अर्थ अति घृणित हैं, ✍लेखनी उसे लिखने में असमर्थ* हैं। आगे कहा है कि वृषभानु की पुत्री राधा सुदामा के शाप और अपने पति की आज्ञा से ६० करोड़ गोपियों के साथ गोलोक से भारतवर्ष में आई।  कृष्ण अपनी उस पत्नी के साथ विलास करते रहे। गोपाल सहस्त्रनाम में कहा गया है -


*गोपाल: कामिनीजारश्चौरजारशिखामणि ।*
श्लोक १३७


*अर्थात - कृष्ण चोर और व्यभिचारियों में शिरोमणि थे।*


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