रुकमणी विवाह भाग 4

रुक्मिणी विवाह      *भाग - 4*


लेखक - स्वामी जगदीश्वरानंद सरस्वती


विष्णुपुराण में कहा है -
*ता वार्यमाणा: पतिभि: पितृभिर्भ्रातृभिस्तथा ।*
*कृष्णं गोपाङ्गना रात्री रमयन्ति रतिप्रिया: ।।*
विष्णुपुराण ५/१३/५१


ब्रह्मवैवर्तादि का यह विषाक्त प्रभाव जयदेव, विद्यापति और चण्डीदास पर भी पडा। जयदेव ने तो अपने ग्रंथ की प्रस्तावना में ही लिखा है कि यदि विलासकला के द्वारा हरिस्मरण करना हो तो जयदेव की सरस्वती गीत-गोविंद से यह प्रयोजन सिद्ध होगा। सूरदास जी ने भी ब्रह्मवैवर्त के आधार पर राधा के परकीयरूप की कल्पना की। यह बात निम्न उद्धरणों से स्पष्ट है।


*नीवी ललित गही यदुराई ।*
*जबहि सरोज धरयो श्रीफल पर तब यशुमति तहं आई ।।*


सूरदास जी द्वारा चित्रित राधा के प्रथम मिलन का चित्रण देखिये -


*बूझत श्याम कौन तू गौरी ।*
*कहाँ रहति काकी तू बेटी, देखी नही कबहुँ ब्रज खोरी*
*काहे को हम ब्रजतन आवति, खेलत रहति आपनी पौरी ।*
*सुनत रहति स्रवननि नन्दढोटा, करत रहत माखन दधि चोरी।*
*तुम्हारो कहा चोरि हम लैहैं, खेलन चलो संग मिली जोरी ।।* 
*'सूरदास' प्रभु रसिक शिरोमणि, बातन भूरइ राधिका भोरी ।।*


इन कवियों की चंचल लेखनी की करामात देखकर आश्चर्य होता है। इनकी कविताएं पढ़ने में लज्जा आती है और यह विश्वास नही होता कि इन्हें गा-गाकर भगत लोग हरि-प्रेम में विभोर हो जाते होंगे।


पौराणिकों के अनुसार राधा कृष्ण की पत्नी है। आज राधा के बिना कृष्ण की कल्पना भी नही हो सकती, परन्तु *स्वयं पुराणों के अनुसार* भी राधा कृष्ण की विवाहिता भार्या नही है। राधा तो कृष्ण की मामी थी। पाठक पूछेंगे कैसे? लीजिए प्रमाण प्रस्तुत है।


*वृषभानोश्च वैश्यस्य सा च कन्या बभूव ह ।*
*सार्ध्दं रायणवैश्येन तत्सम्बन्धं चकार स: ।।*


*कृष्णमातुर्यशोदाया रायणस्तत्सहोदर: ।*
*गोलोके गोपकृष्णांश: सम्बन्धात्कृष्णमातुल: ।।*
ब्रह्मवैवर्त प्रकृति ४१/३५-३७-४०


 


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