प्रेम विवाह में क्या किसी मुसलमान ने धर्म परिवर्तन किया है


प्रेम विवाह में क्या किसी मुसलमान ने धर्म परिवर्तन किया??


प्रेम-विवाह मुसलमान लड़कों और लड़कियों दोनों ने किया है पर क्या किसी मुसलमान लड़के या लड़की ने अपना धर्म परिवर्तन किया??


(1) ब्रिटेन के अरबपति सर जेम्स गोल्डस्मिथ की पुत्री (21), पाकिस्तानी क्रिकेटर इमरान खान (42) के प्रेमजाल में फ़ँसी, उससे 1995 में शादी की, इस्लाम अपनाया (नाम हाइका खान), उर्दू सीखी, पाकिस्तान गई, वहाँ की तहज़ीब के अनुसार ढलने की कोशिश की, दो बच्चे (सुलेमान और कासिम) पैदा किये… नतीजा क्या रहा… तलाक-तलाक-तलाक। अब अपने दो बच्चों के साथ वापस ब्रिटेन।
फ़िर वही सवाल – क्या इमरान खान कम पढ़े-लिखे थे? या आधुनिक(?) नहीं थे? जब जेमिमा ने इतना “एडजस्ट” करने की कोशिश की तो क्या इमरान खान थोड़ा “एडजस्ट” नहीं कर सकते थे? (लेकिन “एडजस्ट” करने के लिये संस्कारों की भी आवश्यकता होती है)…


(2) 24 परगना (पश्चिम बंगाल) के निवासी नागेश्वर दास की पुत्री सरस्वती (21) ने 1997 में अपने से उम्र में काफ़ी बड़े मोहम्मद मेराजुद्दीन से निकाह किया, इस्लाम अपनाया (नाम साबरा बेगम)। सिर्फ़ 6 साल का वैवाहिक जीवन और चार बच्चों के बाद मेराजुद्दीन ने उसे मौखिक तलाक दे दिया और अगले ही दिन कोलकाता हाइकोर्ट के तलाकनामे (No. 786/475/2003 दिनांक 2.12.03) को तलाक भी हो गया।


अब आप खुद ही अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि चार बच्चों के साथ घर से निकाली गई सरस्वती उर्फ़ साबरा बेगम का क्या हुआ होगा, न तो वह अपने पिता के घर जा सकती थी, न ही आत्महत्या कर सकती थी…
अक्सर हिन्दुओं और बाकी विश्व को मूर्ख बनाने के लिये मुस्लिम और सेकुलर विद्वान यह प्रचार करते हैं कि कम पढ़े-लिखे तबके में ही इस प्रकार की तलाक की घटनाएं होती हैं, जबकि हकीकत कुछ और ही है।
क्या इमरान खान या नवाब पटौदी कम पढ़े-लिखे हैं? तो फ़िर नवाब पटौदी, रविन्द्रनाथ टैगोर के परिवार से रिश्ता रखने वाली शर्मिला से शादी करने के लिये इस्लाम छोड़कर, बंगाली क्यों नहीं बन गये?
यदि उनके “सुपुत्र” सैफ़ अली खान को अमृता सिंह से इतना ही प्यार था तो सैफ़, पंजाबी क्यों नहीं बन गया? अब इस उम्र में अमृता सिंह को बच्चों सहित बेसहारा छोड़कर करीना कपूर से शादी कर ली, क्या वह पंजाबी बना??? (यही है असली मानसिकता…)।
शेख अब्दुल्ला और उनके बेटे फ़ारुख अब्दुल्ला दोनों ने अंग्रेज लड़कियों से शादी की, ज़ाहिर है कि उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करने के बाद, यदि वाकई ये लोग सेकुलर होते तो खुद ईसाई धर्म अपना लेते और अंग्रेज बन जाते…?
और तो और आधुनिक जमाने में पैदा हुए इनके पोते यानी कि जम्मू-कश्मीर के  पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी एक हिन्दू लड़की “पायल” से शादी की, लेकिन खुद हिन्दू नहीं बने, उसे मुसलमान बनाया


तात्पर्य यह कि “सेकुलरिज़्म” और “इस्लाम” का दूर-दूर तक आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है और जो हमें दिखाया जाता है वह सिर्फ़ ढोंग-ढकोसला है।
जैसे कि गाँधीजी की पुत्री का विवाह एक मुस्लिम से हुआ, सुब्रह्मण्यम स्वामी की पुत्री का निकाह विदेश सचिव सलमान हैदर के पुत्र से हुआ है
प्रख्यात बंगाली कवि नज़रुल इस्लाम, हुमायूं कबीर (पूर्व केन्द्रीय मंत्री) ने भी हिन्दू लड़कियों से शादी की, क्या इनमें से कोई भी हिन्दू बना?
अज़हरुद्दीन भी अपनी मुस्लिम बीबी नौरीन को चार बच्चे पैदा करके छोड़ चुके और अब संगीता बिजलानी से निकाह कर लिया, उन्हें कोई अफ़सोस नहीं, कोई शिकन नहीं।


ऊपर दिये गये उदाहरणों में अपनी बीवियों और बच्चों को छोड़कर दूसरी शादियाँ करने वालों में से कितने लोग अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे हैं? तब इसमें शिक्षा-दीक्षा का कोई रोल कहाँ रहा? यह तो विशुद्ध लव-जेहाद है।


इसीलिये कई बार लगता है कि सानिया मिर्ज़ा के शोएब के साथ पाकिस्तान जाने पर हायतौबा करने की जरूरत नहीं है, बस 2-4 बच्चे पैदा करने के बाद “रंगीला रसिया” शोएब मलिक उसे “छोड़” देगा और दुरदुराई हुई सानिया मिर्ज़ा अन्ततः वापस भारत में ही पनाह लेगी, और उस वक्त भी उससे सहानुभूति जताने में नारीवादी और सेकुलर संगठन ही सबसे आगे होंगे।
वहीदा रहमान ने कमलजीत से शादी की, वह मुस्लिम बने, अरुण गोविल के भाई ने तबस्सुम से शादी की, मुस्लिम बने, डॉ ज़ाकिर हुसैन (पूर्व राष्ट्रपति) की लड़की ने एक हिन्दू से शादी की, वह भी मुस्लिम बना, एक अल्पख्यात अभिनेत्री किरण वैराले ने दिलीपकुमार के एक रिश्तेदार से शादी की और गायब हो गई।
प्रख्यात (या कुख्यात) गाँधी-नेहरु परिवार के मुस्लिम इतिहास के बारे में तो सभी जानते हैं। ओपी मथाई की पुस्तक के अनुसार राजीव के जन्म के तुरन्त बाद इन्दिरा और फ़िरोज़ की अनबन हो गई थी और वह दोनों अलग-अलग रहने लगे थे।
 पुस्तक में इस बात का ज़िक्र है कि संजय (असली नाम संजीव) गाँधी, फ़िरोज़ की सन्तान नहीं थे। मथाई ने इशारों-इशारों में लिखा है कि मेनका-संजय की शादी तत्कालीन सांसद और वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोहम्मद यूनुस के घर सम्पन्न हुई, तथा संजय गाँधी की मौत के बाद सबसे अधिक फ़ूट-फ़ूटकर रोने वाले मोहम्मद यूनुस ही थे।
यहाँ तक कि मोहम्मद यूनुस ने खुद अपनी पुस्तक “Persons, Passions & Politics” में इस बात का जिक्र किया है कि संजय गाँधी का इस्लामिक रिवाजों के मुताबिक खतना किया गया था।
इस कड़ी में सबसे आश्चर्यजनक नाम है भाकपा के वरिष्ठ नेता इन्द्रजीत गुप्त का। मेदिनीपुर से 37 वर्षों तक सांसद रहने वाले कम्युनिस्ट (जो धर्म को अफ़ीम मानते हैं), जिनकी शिक्षा-दीक्षा सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज दिल्ली तथा किंग्स कॉलेज केम्ब्रिज में हुई, 62 वर्ष की आयु में एक मुस्लिम महिला सुरैया से शादी करने के लिये मुसलमान (इफ़्तियार गनी) बन गये। सुरैया से इन्द्रजीत गुप्त काफ़ी लम्बे समय से प्रेम करते थे, और उन्होंने उसके पति अहमद अली (सामाजिक कार्यकर्ता नफ़ीसा अली के पिता) से उसके तलाक होने तक उसका इन्तज़ार किया।
लेकिन इस समर्पणयुक्त प्यार का नतीजा वही रहा जो हमेशा होता है, जी हाँ, “वन-वे-ट्रेफ़िक”। सुरैया तो हिन्दू नहीं बनीं, उलटे धर्म को सतत कोसने वाले एक कम्युनिस्ट इन्द्रजीत गुप्त “इफ़्तियार गनी” जरूर बन गये।
इसी प्रकार अच्छे खासे पढ़े-लिखे अहमद खान (एडवोकेट) ने अपने निकाह के 50 साल बाद अपनी पत्नी “शाहबानो” को 62 वर्ष की उम्र में तलाक दिया, जो 5 बच्चों की माँ थी… यहाँ भी वजह थी उनसे आयु में काफ़ी छोटी 20 वर्षीय लड़की (शायद कम आयु की लड़कियाँ भी एक कमजोरी हैं?)।
इस केस ने समूचे भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ पर अच्छी-खासी बहस छेड़ी थी। शाहबानो को गुज़ारा भत्ता देने के लिये सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को राजीव गाँधी ने अपने असाधारण बहुमत के जरिये “वोटबैंक राजनीति” के चलते पलट दिया
मुल्लाओं को वरीयता तथा आरिफ़ मोहम्मद खान जैसे उदारवादी मुस्लिम को दरकिनार किया गया…


तात्पर्य यही कि शिक्षा-दीक्षा या अधिक पढ़े-लिखे होने से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता, शरीयत और कुर-आन इनके लिये सर्वोपरि है, देश-समाज आदि सब बाद में…। और कुरान वन वे ट्रैफिक है इसमें कोई आ तो सकता है मगर इसमें से कोई बाहर नहीं जा सकता।
इस लेख के जवाब में सुनील दत्त-नरगिस से लेकर रितिक रोशन-सुजैन खान तक के (गिनेचुने) उदाहरण सुनने को मिलेंगे, लेकिन फ़िर भी सवाल वही रहेगा कि क्या सुनील दत्त या रितिक रोशन ने अपनी पत्नियों को हिन्दू धर्म ग्रहण करवाया? या शाहरुख खान ने गौरी के प्रेम में हिन्दू धर्म अपनाया? नहीं ना?


जी हाँ, वही वन-वे-ट्रैफ़िक!!


सवाल उठना स्वाभाविक है कि ये कैसा प्रेम है? यदि वाकई “प्रेम” ही है तो यह वन-वे ट्रैफ़िक क्यों है? इसीलिये सभी सेकुलरों, प्यार-मुहब्बत-भाईचारे, धर्म की दीवारों से ऊपर उठने आदि की हवाई-किताबी बातें करने वालों से  सिर्फ़ एक ही सवाल है, “कितनी मुस्लिम लड़कियों (अथवा लड़कों) ने “प्रेम”(?) की खातिर हिन्दू धर्म स्वीकार किया है?”  क्या कुछ उत्तर है आपके पास???
कृपया आँकड़े और प्रसिद्ध व्यक्तियों के आचरण द्वारा सिद्ध करें, कि “भाईचारे”(?) की खातिर कितने मुस्लिम लड़के अपनी हिन्दू प्रेमिका की खातिर हिन्दू धर्म में आये? यदि आँकड़े और तथ्य आपके पक्ष में हुए तो हम खुशी-खुशी आपसे माफ़ी माँग लेंगे…
 यदि नहीं, तो हकीकत को पहचानिये और मान लीजिये कि कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य है।
 अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दीजिये और अच्छे-बुरे की पहचान करना सीखाईये। सबसे महत्वपूर्ण बात कि यदि लड़की के सच्चे प्रेम में कोई  युवक, हिन्दू धर्म अपनाने को तैयार होता है तो उसका स्वागत खुले दिल से कीजिये ।
प्रवीन चौधरी चूहड़माजरा।।


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