प्रभु भक्ति से दीर्घायु

हर मनुष्य इस संसार में दीर्घजीवी होना चाहता है, और सुख के लिए अनेक उपाय ढुंढ रहा है, किन्तु वह अपने जीवन के मुख्य उद्देश्य को भुल गया है। वह उस परमात्मा को भुल गया है जिसने उसको बनाया है, संपूर्ण जगत को चला रहा है, पुरे ब्रह्मंड जिससे गतिमान है। हमें उसका सुमिरन करना चाहिए और  हमें अपने जीवन को श्रेष्ठ मार्ग पर चलाते हुए, दीर्घ जीवी बनना चाहिए।


 


हमारे ग्रन्थों में दीर्घ आयु के लिए प्रभु भक्ति का मार्ग बताया है


 


महर्षि मनु जी ने कहा है-


 


ऋषियों ने दीर्घ जप करके अर्थात लम्बे समय तक सन्ध्या की, उसी के अनुसार दीर्घायु प्राप्त की, बुद्धि और यश प्राप्त किया और मरने के पश्चात् अमर कीर्ति प्राप्त की, और दीर्घकालीन जप से ब्रह्मतेज भी प्राप्त किया। - मनु० 9/94


 


यजुर्वेद में कहा है-


 


ओं क्रतो स्मर - यजु० 40/15


 


अर्थात्-हे जीव! तू ओ३म का स्मरण कर।


 


स्नान के पश्चात् सन्ध्या करके प्रभु का चिन्तन करना भी मनुष्य को अपनी दिनचर्या का एक मुख्य अंग बना लेना चाहिए। प्रभु-भक्ति आत्मिक भोजन तो है ही, किन्तु इससे शरीर भी स्वस्थ, बलवान् और निरोग बनता है।


 


उस सर्वशक्तिमान ईश्वर का एकार्ग चित्त होकर चिन्तन करने से साधक को शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक-शक्ति प्राप्त होगी, इसमें कुछ भी संदेह नहीं। ईश्वर-भक्ति के द्वारा जो मनुष्य को एक अलौकिक आन्नद और अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है, उसके शरीर के ऊपर भी बहुत गहरा असर पड़ता है। शरीर की सब धातुओं की विषमता दूर होकर उसमें समता व शक्ति का संचार होता हैं। संत महात्मा तथा योगी जनों के स्वस्थ, बलवान और दीर्घजीवी होने का ईश्वर भक्ति हीे एक मुख्य कारण हैं।


 


महाभारत में लिखा है-


 


ऋषयः दीर्घसन्ध्त्वाद् दीर्घमायुरवाप्नुयुः।


 


अर्थात्- ऋषियों ने दीर्घकाल तक सन्ध्या अर्थात ईश्वर भक्ति करने से ही दीर्घ आयु को प्राप्त किया है।


 


संत कबीर जी ने भी कहा है-


 


औषध खाऊं न बूटी खाऊं, न कोई वैद्य बुलाऊं।


एक ही वैद्य मिलो अविनाशी, वाही को नबज दिखाऊं।।


 


ईश्वर भक्ति जहां शारीरिक उन्नति के लिये आवश्यक है, वहां आत्म-कल्याण के लिए भी परम आवश्यक है। जिस प्रकार हमारे शरीर के लिए भोजन के बिना शरीर का काम नहीं चल सकता है, उसी प्रकार ईश्वर-भक्ति के बिना आत्मा का काम नहीं चल सकता। सच पूछा जाये तो शरीर के लिए भोजन इतना आवश्यक नहीं, जितना आत्मा के लिए ईश्वर-भक्ति।


 


इसीलिए ईश्वर भक्ति को आत्मिक खुराक कहा गया है। ईश्वर भक्ति से ही अज्ञान तिमिर का नाश होकर आत्मा में ज्ञान-ज्योति का प्रकाश होता है। ईश्वर भक्ति के बल से ही मनुष्य संसार में अपनी सब शुभ कामनाएं पूर्ण कर सकता है, अतः आत्म कल्याणा भिलाषी जनों को प्रतिदिन प्रभु का चिंतन अवश्य करना चाहिए।


 


यदि हम प्रातः एक घण्टे तक एकाग्रचित होकर प्रभु की उपासना करें, एक मात्र प्रभु को छोड़कर दूसरा कोई भी विचार मन में न आने दें तो सब प्रकार की शारीरिक तथा मानसिक पीड़ाएं केवल प्रभु-भक्ति से दूर हो सकती हैं।


 


लेखक - आचार्य अनूपदेव


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