पूर्ण कर्म ही पूरे दोष को दबाता है
पूर्ण कर्म ही पूरे दोष को दबाता है
परमात्मा ने मनुष्य के कानों की दूरी पूर्व और पश्चिम की बनाई है। आंख, दोनों नाक, मुख तो एक हाथ से बन्द हो सकते हैं-परन्तु दोनों कानों को यदि कोई बन्द करना चाहे तो दोनों हाथों से ही बन्द हो सकते हैं अन्यथा नहीं । अर्थात् पूर्ण क्रियात्मक आचरण या कर्म ही कान के दोषों को बन्द कर सकता है। अधूरा कर्म उसके दोषों को नहीं दबा सकता।