परोपकारी महाशय रूपसिंह



परोपकारी महाशय रूपसिंह




         परोपकारी महाशय रूपसिंहः आर्य समाज को  दिशाहीन करने वालों ने निजी स्वार्थों व हीन भावना के कारण गोरी चमड़ी वालों, परकीय मतों व कुछ अंग्रेजी पठित अंग्रेज भक्त भारतीय सुधारकों की ऋषि भक्ति पर आवश्यकता से कहीं अधिक बल देकर अनेक सच्चे व समर्पित ऋषि भक्तों की घोर उपेक्षा करके इतिहास ही विकृत कर दिया। ऋषि के पत्र-व्यवहार के नये संस्करण से उनक ो मुखरित करना अब सरल हो गया है। ऐसे परोपकारी ऋषि भक्तों में से एक थे महाशय रूपसिंह जी। आप कहाँ के थे? यह बताना अति कठिन कार्य है। सभवतः कोहाट (सीमा प्रान्त) के निवासी थे। वैसे क्लर्क होने से विभिन्न नगरों में रहे। गुजराँवाला व लाहौर में भी रहे।


        प्रतीत होता है, घर से सपन्न थे। बहुत दानी थे। ऋषि जी को परोपकार के कार्यों के लिए उस युग में पचास-पचास, साठ-साठ रुपये भेजते रहे। महर्षि को भेजे गये आपके प्रश्न व उनके उत्तर भी महत्त्वपूर्ण हैं, यथा ऋषि जी ने इनको लिखे पत्र में मांसाहार को बहुत बुरा लिखा है। आप राजस्थान यात्रा के समय (मेवाड़ में) ऋषि जी से मिलने आये थे। जिन्हें ऋषि ने बहुत पत्र लिखे और जो अन्त तक आर्य रहे, उनमें से एक आप भी थे। इस इतिहास पुरुष की ऐतिहासिक समाज सेवा पर गत साठ वर्षों में किसी ने क्या लिखा? सिख परिवार में जन्मे इस ऋषि भक्त ने तथा श्री महाशय कृष्ण जी ने युवा भगवद्दत्त को ऋषि के पत्र-व्यवहार के संग्रह की लगन लगाई। दोनों ने तरुण भगवद्दत्त को महर्षि के कुछ पत्र सौंपकर ऋषि के पत्रों की खोज व संग्रह को आन्दोलन का रूप दिलवाने का गौरव प्राप्त किया।


        पं. भगवद्दत्त शोध शतादी वर्ष 2016 के ऋषि मेले तक चलेगा। इस दिशा में अभी बहुत कुछ करना शेष है। श्री डॉ. रामप्रकाश जी का भी इस विषय का छात्र जीवन से ही गभीर अध्ययन है। मेरी इच्छा है कि डॉ. धर्मवीर जी, आचार्य विरजानन्द जी, डॉ. रामप्रकाश जी, श्री सत्येन्द्रसिंह आर्य जी और डॉ. वेदपाल जी भी ऋषि के पत्रों पर दो-दो तीन-तीन लेख लिखें, तभी पं. भगवद्दत्त जी के तर्पण का यश हम प्राप्त कर सकेंगे।


       यह सेवक तो अपने अल्पमत के अनुसार इस कार्य में लगा ही है। पण्डित जी से बहुत कुछ सीखा है। उनका प्यार पाया। कुछ तो ऋण चुकता करना चाहिये।


      मान्य ओम्मुनि जी ने पत्र-व्यवहार के प्रकाशन से एक कार्य आरभ कर दिया है- ऋषि के सपर्क में आये आर्य पुरुषों के परिवारों की खोज। मुझे भी इस काम में लगा दिया है। पं. भगवद्दत्त जी स्वयं भी एक ऐसे परिवार से थे। इस समय राजस्थान में ऐसे कई परिवारों का पता हमने कर लिया है। कोठारी परिवार, सारड़ा परिवार तथा शाहपुरा, यावर व जोधपुर आदि के ऐसे परिवारों की सूची शीघ्र प्रकाशित हो जायेगी। मेरठ क्षेत्र की सूची बनाने का कार्य डॉ. वेदपाल जी को हाथ में लेना होगा।


      एक अलय स्रोतः पश्चिमी उत्तरप्रदेश के राजपूतों ने सरकार को एक स्मरण-पत्र दिया था। उस पर कई प्रतिष्ठित ठाकुरों के हस्ताक्षर हैं। वह चार, छह दिन में मुझे प्राप्त हो जायेगा। ठाकुर मुकन्द सिंह, मुन्नासिंह, भोपालसिंह के हस्ताक्षर तो हैं ही। पढ़ने से पता चलेगा कि शेष हस्ताक्षर कर्त्ता भी क्या ऋषि भक्त ही थे? इस स्मरण पत्र के विषय पर भी फिर ही लिखेंगे। इससे आर्यसमाज के इतिहास पर कुछ नया प्रकाश अवश्य पड़ेगा। दस्तावेज प्राप्त होने दो। आवश्यकता पड़ेगी तो श्री सत्येन्द्रसिंह जी, श्री यशपाल जी और ठाकुर विक्रमसिंह जी को साथ लेकर अलीगढ़ व छलेसर की यात्रा भी करुँगा।



Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।