पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी

*अद्भुत प्रतिभा के धनी, भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी ने अपने गुरु को ही अपना शिष्य बना लिया !* -


गुरुदत्त विद्यार्थी जी ने स्वामी अच्युतानन्द (जो नवीन वेदांती थे) को आर्य सन्यासी बनाने के लिए ठान लिया। इसके लिए गुरुदत्त जी उनके शिष्य बनकर उनके पास जाया करते थे।फिर क्या हुआ–समय बदला गुरु शिष्य बन गया और शिष्य गुरु।......स्वामी अच्युतानन्द कहा करते थे, “पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी का सच्चा प्रेम,अथाह योग्यता और अपूर्ण गुण हमें आर्यसमाज में खींच लाया।”


जिस हठीले अच्युतानन्द ने ऋषि दयानन्द से शास्त्रार्थ समर में पराजित होकर भी पराजय नहीं मानी थी,आज वही उसके शिष्य के चरणों में अपने अस्त्र-शस्त्र फेंक चुका है।आज वह उसी ऋषि का भक्त है-उसी के प्रति उसे श्रद्धा हो गयी है। श्रद्धा भी इतनी कि जब कई वर्ष पीछे पण्डित चमूपति ने उनसे पूछा, “स्वामी जी नवीन वेदान्त विषय पर आपका शास्त्रार्थ महर्षि दयानन्द से हुआ था, इसका कोई वृत्तान्त सुनाइए।”  तो गर्व से बोले-“मैं मण्डली सहित मण्डप में पहुँचा।”


चमूपति जी पूछ बैठे - “और … और मेरा ऋषि दयानंद ?”
बस,एकदम बाँध टूट गया,स्वामी अच्युतानंद जी की आँखों से आँसू छलक आये।हृदय की श्रद्धा आँखों का पानी बनकर बह निकली, गला रूँध गया और भर्राई हुई आवाज में बोले-“ऋषि ! ऋषि ! ! वह ऋषि (दयानंद) तो केवल अपने प्रभु के साथ पधारे थे।” इतना कहते ही बिलख -बिलखकर रोने लगे।ऋषि के प्रति उनमें इतनी श्रद्धा पैदा कर दी थी पंडित गुरुदत्त जी ने। 
 
नोट:- स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपतराय जी ने अपने सहपाठी पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी जी को सत्यार्थप्रकाश भेंट किया था, जिसे पढ कर वे नास्तिक से आस्तिक बने, युवावस्था में ही कई ग्रन्थ लिखे और दयानंद ऐंग्लो वैदिक ( डी ऐ वी) कालिज की स्थापना की।


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