ऊंट के गले में बिल्ली


ऊंट के गले में बिल्ली 
-डा.अशोक आर्य 
          किसी भी भाषाई साहित्य में कहावतों , लोकोक्तियों तथा मुहावरों का विशेष स्थान होता है | भाषा को यह तत्व सौन्दर्य देते हैं तथा लेखन के रूप को निखार देते हैं | इसलिए ही अधिकाँश साहित्यकार साहित्य की इन विधाओं का अपनी रचनाओं में भरपूर प्रयोग करते हाँ | जब इन मुहावरों ,लोकोक्तियों तथा कहावतों का प्रयोग करते हुए इनके साथ अलंकार भी जुड़ जाते हैं तो यह साहित्य के लिए सोने पर सुहागे का काम करता है | कविरत्न प्रकाश जी ने अपनी रचनाओं में जहां इन मुहावरों , कहावतों व लोकोक्तियों का भरपूर प्रयोग किया है , वहां उन्होंने अलंकारों का सुन्दर प्रयोग कर के अपनी रचनाओं के सौन्दर्य को बढाया भी है | एक लोकोक्ति है ऊंट के गले में बिल्ली | इस लोकोक्ति को देख कर अनेक बार हंसी भी आती है और कहते हैं कि ऊंट के गले में भी कभी बिल्ली देखी है किन्तु प्रकाश जी ने अपने अपने काव्य के द्वारा इस लोकोक्ति की सटीक व्याख्या की है | वह अपनी रचना में इस का प्रयोग इस प्रकार करते हैं :-
                पाय निमंत्रण एक विवाह का 
                           ले के उछाह गए हम दिल्ली |
                 तेरह साल की नाजुक दुल्हन 
                           तरेपन का दुल्हा शेखचिल्ली  |
                 रोष में आवत देख के लोग 
                            सुनावत बोला उडावत खिल्ली |
                  बेटी के बाप ने लोभ में आ कर 
                            बांधी गले में है ऊंट के बिल्ली ||
          कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से उपर्युक्त लोकोक्ति का अत्यंत स्टीक प्रयोग करते हुए अपनी रचना का आरम्भ इस प्रकार किया है कि हमें दिल्ली से विवाह के लिए एक निमंत्रण मिला और उस निमंत्रण को पाकर हम बड़े ही उत्साह से दिल्ली के लिए रवाना हुए | ख़ुशी थी कि विवाह का आनंद लेंगे | इस विचार को मन में संजोये हम दिल्ली पहुँच गए | वहां जा कर क्या देखा ? हम तो देख कर हतप्रभ ही रह गए क्योंकि इस विवाह के लिए जो दुल्हन थी वह वह शरीर से अत्यंत नाजुक थी ओर उसकी आयु तो मात्र तेरह वर्ष की ही थी जबकि  दुल्हे राजा ,जो शेखचिल्ली की भाँति डींगे हांकते थे , वह तरेपन वर्ष के थे | यह अनमेल विवाह था |
           कवि तो महर्षि दयानंद सरस्वती के शिष्य थे | आर्य समाज के उच्चकोटि के कवि और विचारक, प्रचारक  थे | वह इस अनेम्ल विवाह को कैसे सहन करते | बस झटपट अपनी लेखनी उठाई और इसे कागज़ पर घिसने लगे | कुछ ही क्षणों में यह रचना सामने आ गई , जिसकी व्याख्या इस समय मैं आपके सम्मुख रखने में लगा हूँ | 
             इस अनमेल विवाह को देख के सूझवान समाज सुधारक लोगों में रोष की एक लहर सी दौड़ गई और रोष से भरे इन लोगों ने इस विवाह की खिल्ली उड़ानी आरम्भ कर दी | इसके साथ ही साथ अपनी - अपनी वाणी से अनेक प्रकार के लज्जात्मक शब्द भी बोलने लगे | यह सत्य ही है कि इस बेटी के बाप की कुछ मजबूरियां रही होंगी , कुछ समस्याएं रहीं होंगी | वह अत्यधिक गरीब रहा होगा | इस कारण अपनी आर्थिक दशा को सुधारनेके लिए ही उसने लालच में आकर यह विवाह रूप में अपनी कन्या की बलि चढ़ाई होगी | तभी तो कहा है कि बाँधी गले में है ऊंट के बिल्ली |


डा. अशोक आर्य 


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