नये ट्रेफिक नियम कुछ जिम्मेदारी हमारी भी

मोटर व्हीकल ऐक्ट 2019 एक सितम्बर से लागू हो गया है। जिससे ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों को भारी जुर्माना भुगतना पड़ेगा। इस एक्ट को बीती महीने ही संसद से मंजूरी मिली है। इन नियमों का उद्देश्य लोगों में ट्रैफिक नियमों को तोड़ने का भय भरना है क्योंकि अभी तक जुर्माने की राशि बहुत कम होती थी जिसकी वजह से लोग 100-50 रुपये थमाकर ट्रैफिक के नियमों को तोड़ना अपनी शान समझते थे। लेकिन लागू हुए इन नये नियमों के खिलाफ मजाक में सही सोशल मीडिया पर ढेरों मीम्स बने, अनेकों चुटकुले एवं मजाक बनी यहाँ तक भी कहा गया कि नये नियमों में फांसी की सजा छोड़कर बाकि सब कुछ शामिल है।


जब कुछ दिन पहले मैंने नया मोटर व्हीकल ऐक्ट 2019 के बारे में सुना था तब मुझे लगा था कि आम भारतीय इसका तहेदिल से स्वागत करेंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया जबकि मुद्दा मजाक का नहीं बल्कि बेहद गंभीरता का है। जो यह सोचने पर मजबूर कर देता कि आखिर ट्रेफिक पुलिस को यह कानून क्यों लाने पड़े!


पिछले साल फरवरी 2018 घटना की घटना ही उठाकर देख लीजिये दिल्ली रोहिणी के प्रशांत विहार के सेक्टर 11 की लालबत्ती पर 25 वर्षीय युवक मंजीत सड़क पार कर रहा था। तभी रेड लाइट जम्प करते हुए एक सैंट्रो कार तेज रफ्तार से आई और उसने मंजीत को जबरदस्त टक्कर मार दी। टक्कर लगते ही मंजीत उछल कर दूर जा गिरा और उसे गंभीर चोटें आई, पर कार नहीं रुकी, हादसे को अंजाम देने के बाद कार चालक ने रफ्तार और बढ़ा दी। लेकिन वो कार संभाल नहीं पाया और डिवाइडर से टकरा कर रुक गया। कार में कुल चार लोग सवार थे। कार एक 16 वर्षीय नाबालिग लड़का चला रहा था।



उसी दौरान इंदौर के तुकोगंज इलाके में आनंद नाम के कॉटन व्यापारी को, एक व्यापारी के नाबालिग बेटे ने अपनी बीएमडब्लू गाड़ी से रोंद दिया था। ऐसी न जाने कितनी घटनाएँ हर रोज पुलिस थानों में दर्ज होती है और अखबार के किसी छोटे मोटे कोनों में छपती है। चूँकि आज अधिकांश लोग सोशल मीडिया पर रहते है और उन्हीं खबरों को पढ़ते है जो पढाई जाती है मसलन हिन्दू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान इसके अलावा दर्द भरी शायरी जैसी पोस्ट पढने को मिलती है। इस कारण हमारे लिए ये खबरें कोई खास मायने नहीं रखती न हम तक पहुँच पाती।


आप अगर दिल्ली से बाहर रहते है और दिल्ली से लगती इसकी किसी भी सीमा आप रोज क्रोस कर अपनी ड्यूटी पर पहुँचते है तो दिल पर हाथ रखकर कितने लोग सच बता सकते है कि घर से निकलते ही पहला ख्याल ये ना आता हो कि हे भगवान बस कहीं ट्रेफिक जाम न मिले। पर कभी सोचा है ये ट्रेफिक जाम किस कारण लगता है? वाहन ज्यादा हो गये या सड़कें पतली रह गयी?


 यदि आप ऐसा सोचते है तो आप अभी कुछ दिन और पबजी खेल सकते है क्योंकि अधिकांश जाम ट्रेफिक नियम तोड़कर पहले निकलने के चक्कर में आपाधापी में लगते है। दूसरा आप रेड लाइट पर खड़े होकर देखिये कितने लोग ऐसे है जो जेब्रा क्रोसिंग से पीछे खड़े होते है? कई बार मैंने देखा कि किसी बाइक वाले को जरा सा रास्ता दिख जाये तो वह सारे नियम ताक पर रखकर सबसे आगे निकलकर खड़े होते है।


मेरा एक मित्र  है वो उस समय जर्मनी में था।  वह वहां पर अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए तीन बार परिवहन विभाग में गया। हर बार फैल हुआ। जबकि वह गाड़ी अच्छे से चलाता है। आखिरी चांस में उसनें वहां के परिवहन अधिकारी से पूछा, आखिर उसकी गलती क्या रह जाती है जो उसे फ़ैल कर दिया जाता है? तो उसनें बताया आप हर बार जेब्रा क्रोसिंग पर बिना ब्रेक लिए और दोनों तरफ देखें सीधे स्पीड से निकल जाते है। उसे उस दिन जेब्रा क्रोसिंग की एहमियत का पता चला। इसमें उसकी कोई गलती नहीं क्योंकि अपने यहाँ वाहन चालकों को जेब्रा क्रोसिंग से कोई मतलब है ही नहीं शायद यह सोचकर निकल जाते है कि सरकार के पास सफेदी ज्यादा थी जो सड़क पोत दी।


यही नहीं इसके अलावा भी दिल्ली से लगती सीमाओं पर ऑटों में पीछे तीन की सीट पर चार और आगे ड्राइवर सीट पर भी दो तीन लोग बैठा लेते है। छोटे-छोटे नाबालिग बच्चें बाइक लिए आसानी से दिख जाते है। बाइक पर तीन बैठाना आम बात है और हेलमेट तो कोई ही विरला ऐसा है जो किसी अच्छी कम्पनी का खरीदता हो। बस सौ दो सौ रूपये दिए हेलमेट लिया और चल देते है। क्योंकि हम एक धारणा में जीते है कि यदि किसी कारण पुलिस ने हमें रोका भी तो सौ पचास रूपये देकर निकल जायेंगे। हालाँकि इसमें काफी हद तक सत्यता भी है।


आप सडक पर जाइये कितने लोग ऐसे मिलेंगे जो हेलमेट अपनी स्वयं की रक्षा के लिए लगाते है। ज्यादातर यही कहेंगे कि चालान कटने के डर से हेलमेट लगाया है। सीट बेल्ट से लेकर हमारे जीवन उपयोगी वो नियम जो हमारी रक्षा करते है हम भारतीय उनका इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ चालान कटने के डर से करते है। इसके अलावा यदि हम सड़क दुर्घटना के आंकड़ों पर नजर डाले तो देश में हर मिनट एक सड़क दुर्घटना होती है, हर चार मिनट में एक मौत हो जाती है। सालाना करीब 1.35 लाख सड़क हादसों का शिकार होते हैं। सड़क दुर्घटनाओं का यह आंकड़ा दुनिया में सबसे बड़ा है और अधिकांश दुर्घटना लापरवाही में होना पाई जाती है। इसलिए सभी गलतियाँ यातायात पुलिस की मत निकालिए अपनी भी जिम्मेदारी समझिये। जिम्मेदार नागरिक बनिए, वरना कोसते रहिये पुलिस को। बनवाते रहिये नये-नये नियम और कानून भुगतते रहिये चालान। देश की पुलिस आपकी सेवा में तत्पर रहेगी चाहें चालान के पैसे दीजिये या अपनी जिम्मेदारी समझिये। आपकी सोशल मीडिया वाली मजाक से पुलिस को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।


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