नहीं बचेगा अत्याचारी


नहीं बचेगा अत्याचारी




सन्तों के लक्षण सुनों, आज लगाकर ध्यान।
ईश भक्त, धर्मात्मा, वेदों के विद्वान्।।
वेदों के विद्वान्, सदाचारी, गृहत्यागी।
धैर्यवान्,विनम्र,परोपकारी, वैरागी।।
सादा जीवन उच्च-विचारों के जो स्वामी।
वेदों का उपदेश करें, वे सन्त हैं नामी।।
जगत् गुरु दयानन्द थे, ईश्वर भक्त महान्।
दयासिन्धु धर्मात्मा, थे वैदिक विद्वान्।।
थे वैदिक विद्वान्, ब्रह्मचारी, तपधारी।
दुखियों के हमदर्द, सदाचारी, उपकारी।।
किया घोर विषपान, भयंकर कष्ट उठाया।
किया वेद प्रचार, सकल संसार जगाया।।
दयानन्द ऋषिराज का, जग पर है अहसान।
दोष लगाता था उन्हें, रामपाल शैतान।।
रामपाल शैतान, स्वयं बनता था ईश्वर।
करता था उत्पात, रात-दिन कामी पामर।।
बरवाला में किलानुमा, आश्रम बनाया।
उस पापी ने बड़ा-जुल्म प्रजा पर ढाया।।
उसके कुकर्म देखकर, जागे आर्य कुमार।
पोल खोल दी दुष्ट की, किया वेद प्रचार।।
किया वेद प्रचार, नहीं योद्धा दहलाए।
आचार्य बलदेव-तपस्वी आगे आए।।
किया गजब का काम, चलाया फिर आन्दोलन।
बन्द करो पाखण्ड दहाड़े मिल आर्य जन।
''नन्दलाल'' कह, नहीं बचेगा अत्याचारी।।
– ग्राम पत्रालय बहीन, जनपद पलवल (हरियाणा)



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