मृदु लोचन चंचल राग बसा , उर उर्मि मनोरम दृश्य भरा !
|| दुर्मिल सवैया ||
मृदु लोचन चंचल राग बसा , उर उर्मि मनोरम दृश्य भरा !
मधु फेन उठे भर रत्न नये , अनुगुंजित गीत विराट धरा !
जड़ भौतिक सत्य निहार जरा, नव रश्मि प्रभा तम जाल मरा !
सब त्याग विचार उजास हुआ, गुरु छाँव विशाल विकार हरा !!
गिरती गति तेज विषाद नही , छल छंद विधान विश्रृंखल है !
रस निर्झर निर्मल भूतल में, मृदु धार अलौकिक मंगल है !
मन मंदिर में जड़ चेतन की , अभिराम छटा अति मंजुल है !
गुरु ज्ञान विशारद रश्मि बहे , प्रिय नेह भरा उर चंचल है !!