MORE प्रत्येक मनुष्य दोनों लोकों में अपने जीवन-कर्म अनुसार स्वागत पाता है

 प्रत्येक मनुष्य दोनों लोकों में अपने जीवन-कर्म अनुसार स्वागत पाता है



      मनुष्य मान का भूखा है । वह इस भूख को मिटाने के लिए क्या क्या नहीं करता है ? लाहौर-कराची मेल जब प्रस्थान करती है तो यात्री लाहौर (या अन्य किसी स्टेशन) से चढ़ता है तो उसके वस्त्र उज्ज्वल और मुख साफ होता है। परन्तु रास्ते को धूलि, मिट्टो, रेत, इञ्जन के कोयले, ऊपर से सूर्य की गर्मी से पसीना जो यात्रियों को आता है उनके कारण कराची पहुंचने से पहले ही यात्री एक नमूना बन जाता है । शीशे में अपनी परछाई देखता है तो अपनी इस दशा पर व्याकुल हो जाता है। किसी को मुख दिखाने योग्य नहीं पाता। एक भयानक बहशियों जैसी शकल हो जाती है । एक दो स्टेशन पहले (कराची से) लोग यथाशक्ति अपनी धूल-मिट्टी झाड़ते हैं और पानी से हाथ मुख भी धोते हैं कि हम किसी तरह पूर्व की तरह साफ और उज्ज्वल दिखाई दें। पर ऐसी सफलता सबको कहां ? कई जैन्टिल-मैन जिन्हें अपनी पोजीशन का बड़ा मान होता है वे साबुन से अपने मुख-सिर को साफ करते हैं और मैले कपड़े उतारकर नए कपड़े (ट्रंक से निकालकर) पहनते हैं तथा हर समय शीशा देखते रहते हैं कि पहले जैसे बन गये कि नहीं। और जिन बेचारों के पास दूसरे कपडे न हों और साबुन भी न होवे तो कार्टून ही बने दिखाई देते हैं। ।


      प्रत्येक मनुष्य अपने श्वासों को मेल ट्रेन में आरूढ़ है और बड़ी तेजी के साथ श्वास दौड़ रहे हैं । अपने जीवन को धूलि मिट्टी रेत से बुरे हाल और परेशान हो रहा है और अन्त समय जब मृत्यु का स्टेशन निकट आनेवाला होता है उससे पूर्व ही चिन्ता लग जाती है कि कैसे लोग हमको पसन्द करेंगे । बहुत-लोग दान-पुण्य से अपनी धूलि झाड़ना चाहते हैं जिन्हें जैसी सामर्थ्य होती है, और जिनके शुभ कर्म के वस्त्र और भी रखे हैं-वे तो झट मैले उतारकर उन साफ कपड़ों को पहन लेते हैं और उज्ज्वलमुख बनकर अन्तिम स्टेशन पर भी उत्तम दिखाई देते हैं । परन्तु जिन बेचारों के पास कुछ भी नहीं, वे मैले के मैले उतरते हैं और बहत ही गन्दे नजर आते हैं । आगामी जन्म में भी किसी नहीं भाते ।


      २-रेल से उतरनेवाले यात्रियों की कई किस्में होती होती हैं-एक तो वे हैं-जिनके स्वागत के लिए स्वागत के लिए बड़े-बड़े बड़े श्रेष्ठ व्यक्ति आते हैं, और मोटरें, फूलों के हार और कई अभिनन्दन-पत्र प्रस्तुत करने को ले आते हैं। और उनके विश्राम-स्थल भी पहले से सजे हुए होते हैं। ये तो होते हैं बुलाये हुये महान् व्यक्ति । जिनके मिट्टी के शरीर उनके उत्तम गुण और शुभ आचरण के कारण उच्च सत्कार से स्वागत किये जाते हैं। दूसरे वे हैं-जिनके स्वागत के लिए मोटर भी आई है और आदमी भी। परन्तु वह मोटर और वे आदमी उसी सज्जन के अपने ही हैं। उसके तार-चिट्ठी देने पर कि अमुक समय आऊंगा । वे उसकी ही वस्तुएं लाते हैं। ये वे सज्जन होते हैं-जो दानी होते हैं । अन्त समय उनकी अपनी दी हुई वस्तुएं उनका स्वागत करती हैं। तीसरे वे हैं-जो असंख्य हैं जिनके स्वागत के लिए न कोई आता है-न कोई गाड़ी मोटर आती है। वे बेचारे अपना सामान आप ही सिर पर उठाकर नगर में यात्रियों की भांति धर्मशालाओं, किराये के यात्री-गृहों में जा बसेरा करते हैं और आजीविका [भोग] की खोज के लिए आते हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने न दान-पुण्य किया है-न शुभ आचरण बनाये हैं। न किसी को पहचाना कि यह पूज्य है-इसकी सेवा करूं । या यह दीन-दुखी है-इसकी सहायता करूं। अब इनको भी कोई अधेले को नहीं पूछता, न ही पहचानता।


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