मूर्ति पूजा के विषय में विभिन्न संतों के विचार

मूर्ति पूजा के विषय में विभिन्न संतों के विचार


हमारे कुछ हिन्दू मित्र जो मूर्ति पूजा के समर्थक हैं स्वामी दयानंद की मूर्ति पूजा के विरुद्ध वैदिक मान्यता से संतुष्ट नहीं हैं एवं स्वामी जी के मंतव्य को कठोर मानते हैं। परन्तु मूर्ति पूजा का समर्थन तो प्राय: सभी समाज सुधारक नहीं करते। चाहे वह गुरु नानक देव जी हो, चाहे कबीर हो, चाहे दादु हो और चाहे गरीबदास हो। सभी कठोर से कठोर शब्दों में मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं। सत्य यह हैं की सभी मूर्ति पूजा से सम्बंधित दोषों से परिचित थे।


गुरु नानक देव जी की मूर्ति पूजा विषयक मत


एके पाथर कीजे भाड


दूजे पाथर धरिये पाड


जे ओह देउता ओह भी देवा।


- राग गुजरी नाम देव


 


घर महि ठाकुर नदर न आवे,


गल महि पाहन लै लटकावे।


जिस पाहन कउ ठाकुर कहता।


ओह पाहन लै उसको डूबता।


गुनहगार, लूण हरामी।


पावन नाव न पार गिरामी


-राम सूही म ५ (गू अर्जुन)


 कबीर देव जी की मूर्ति पूजा विषयक मत


जो पाथर को कहते देव


ताकि विरथा होव सेव


न पाथर बोले न किछ देइ।


फोकट धर्म निष्फल है सेव।


- राग भैरव म ५ (कबीर )


 


पाहन परमेश्वर किया पूजे सब संसार।


इस भावा से जो रहे बूडे काली धार। (कबीर)


 


माटी के कर देवी देवा


काट काट जीव देइया जी।


जो तुहरा हैं साचा देवा


खेत चरन क्यों न लेइया जी।


-कबीर बीजक पृष्ठ २२६ शब्द ७६


 


रामस्नेही मत की मूर्ति पूजक मान्यता 


 


जल पीवे पाषाण धोय,


सोतो आदि अंत पाषाण होय।


आकाश शीस पाताल पाप,


सो संपुट में कैसे आप।


- रामस्नेही धर्म प्रकाश


 


पत्थर पूजियां हर न मिलेरे,


सब कोई पूजो जाय।


पूजो नी घररी घरटिया,


तब जग पीसर खाय।


- रामस्नेही धर्म प्रकाश


 


 दादूजी की मूर्ति पूजक मान्यता 


 


पत्थर पीजै घोय कर, पत्थर पूजे प्राण।


अंत काल पथर भए, बहु बूड़े इह ज्ञान।


-दादूजी १४०


 


गरीबदास की मूर्ति पूजक मान्यता


पीतल ही का थाल हैं, पीतल का लोटा।


जड़ मूरत को पूजते, आवेगा टोटा।


पीतल चमचा पूजिए, जो खान परोसे।


जड़ मूरत किस काम की, मत रहो भरोसे।


- गरीबदास


 


इस प्रकार से अनेक उदहारण समाज सुधारकों की लेखावली से पढ़ने में आते हैं जो की मूर्ति पूजा का खंडन करते हैं।


पाठक विचार करे।


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