मिटे जो देश के खातिर
मिटे जो देश के खातिर ,उन्हीं का ध्यान करते हैं |
हुए जो देश पर कुर्बां,उन्हीं का मान करते हैं ||
लिखे जो शौर्य की गाथा लहू अपना समर्पित कर ,
वतन के ऐसे वीरों पर सभी अभिमान करते हैं ||
बड़ा अभिमान है मुझको मेरे भारत की धाती पर |
बड़ा ही मान है मुझकोअमर ज्योति की बाती पर|
यज्ञ में आहुति बनकर निछावर प्राण कर डाले ,
अनेकों वीर सोये हैं , कफन लेकर यूँ छाती पर ||
मेरा गौरव तिरंगा है , मुझे पल - पल लुभाता है |
हिंद के अभिमान की यारो,कहानी ये सुनाता है |
लहू मेरा उबलता है , नयन से आग है बरसे ,
शहादत का नग्न मंजर मुझे जब याद आता है ||
( एक मुक्तक अलग हट कर )
इस माटी के पुतले पर, मनुजअभिमान क्या करना।
यशस्वी है सदा यश ही,अत: गुणगान क्या करना |
फ़कत शमशान तक ही है,हमें जाना यकीं मानो ,
अथक चलने की आदत पर, मनु फिर मान क्या करना ||