मनुष्य को भूल का परिणाम
मनुष्य को भूल का परिणाम
जब साधारण मनुष्य अपने किसी मित्र, बुजुर्ग, पूजनीय पुरुष की अपेक्षा अपने में भूल से अधिक गुण मानने लग जाता है तो उसके मन में धीरे-धीरे यह विचार कभी-कभी अपनी और उसकी तुलना करने का आता रहता है और यह विचार संस्कार का रूप बन जाता है। और यही पता लगता है कि वह संस्कार समय पर कभी कभी संकेत (चिह्नमात्र) कभी स्पष्टतया और कभी बनावट से प्रकट हो उठता है । और फिर वही संस्कार अभिमान और क्रोध का रूप बदलकर निरादर करा देने का कारण बन जाता है । साधारण मनुष्य प्रकट को ही देखनेवाला है-वह उसी अपने अधिक गुण का अनुमान गलत लगाता है । स्थूल-वत्ति के लोग अपनी स्थूल-क्रिया को दूसरे की सूक्ष्म-क्रिया से जो प्रकटतया बहुत ही थोड़ी दीखती है-अधिक समझ लेते हैं। सुनार की ठक्-ठक् और लोहार की एक सट के अनुसार वस्तुतः जानना चाहिए ।