मनुष्य के चेहरे दो प्रकार के

प्रायः व्यक्ति के दो चेहरे होते हैं। एक असली और दूसरा नकली। दुनिया के सामने अधिकतर नकली चेहरा ही आता है, असली चेहरा तो मन में छिपा रहता है। 
तो जब भी व्यक्ति दूसरों के सामने आता है, तो वह जैसी वाणी और जैसा व्यवहार प्रदर्शित करता है उसी के आधार पर लोग उसको पहचानते हैं। *किसी के मन में क्या है यह तो कोई पूरी तरह से नहीं जान पाता. उसका जो भी वाणी और व्यवहार सामने आता है, उसके आधार पर दूसरे लोग उस व्यक्ति का मानसिक स्तर भी कुछ कुछ मात्रा में जान लेते हैं।*
 आप भी वाणी और व्यवहार का जो प्रदर्शन करते हैं, उसका एक उद्देश्य यह भी होता है कि लोगों पर आपके वाणी और व्यवहार का अच्छा प्रभाव पड़े, जिससे कि वे लोग आपसे प्रसन्न रहें और आवश्यकता पड़ने पर आपकी सहायता कर सकें, आप को लाभ पहुंचा सकें।
यदि आपका यह भी एक उद्देश्य हो, तो *लोगों को एक उचित सीमा तक (न्याय को ध्यान में रखते हुए) प्रसन्न करना अच्छा है और आवश्यक भी है। उसके लिए अपनी वाणी को मधुर और व्यवहार को शुद्ध रखें. शुद्ध का अर्थ है, ईमानदारी से बुद्धिमत्ता से व्यवहार करना। मन में सदा ही शुद्ध विचार रखें, सेवा की भावना रखें , चेहरे पर सदा प्रसन्नता झलकती रहे, और उसमें भी छल न होे*।
यदि आप ऐसा करेंगे, तो निश्चित रूप से आपका व्यवहार प्रदर्शन उत्तम होगा और आप सदा दूसरों से लाभ प्राप्त करते रहेंगे। जब दूसरे लोग आपको लाभ देवें, तो आप का भी कर्तव्य है कि आप भी दूसरों को लाभ पहुंचाएं। यही मनुष्यता है. 
- *स्रोत।    -  वेद।*
*लेखक   -  महर्षि दयानन्द स्वामी।*
*प्रस्तुति  - *वेद वरदान आर्य*


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