मनुष्य और यज्ञ जुडवाँ भाई हैं
मनुष्य और यज्ञ जुडवाँ भाई हैं
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोsस्त्विष्टकामधुक्।।(गीता)
अर्थात - प्रजापति ने पहले यज्ञ सहित प्रजा को रचकर कहा कि इस(यज्ञ)से तुम फलो, फूलो और यह(यज्ञ)तुम्हारी अभीष्ट कामनाओं को पूरा करने वाला हो।।
प्रजापति ने मनुष्य को निर्देश किया कि तुम इसे अपनाओ, इसे अपने भीतर और बाहर ओतप्रोत करो, इसी से तुम्हारा कल्याण होगा।जिस यज्ञ को ब्रह्मा ने एक सुनिश्चित तप बताया है, उसका प्रतीक अग्निहोत्र है। हवन द्वारा सुगन्धित, पौष्टिक, आरोग्यबर्धक, उत्तम पदार्थों की आहुति देकर हम उन्हें वायुभूत बनाकर सम्पूर्ण प्राणियों के लिए बाँट देते हैं।इसमें परोपकार के लिए उत्सर्ग करके अपनी उदारता का परिचय देते हैं।
अग्निहोत्र के पीछे जिस आदर्शवादिता का समावेश है वस्तुतः उसे ही यज्ञ कहते हैं।वायुशोधन आदि लाभ तो गौण हैं।