माटी की यह देह है, क्यों करना अभिमान

माटी की यह देह है, क्यों करना अभिमान
तनिक लगे टक्कर कहीं,मिट जाए सब शान,
सँभल करें उपयोग तो, यही अमोलक वस्तु
कहते संत सुजान सब,सुंदरतम वरदान।


अमृत घट तक हो भरा,अमर नहीं पर देह
जब तक तन में प्राण है,करें सभी से स्नेह,
कल्पनेश लो मान यह, अमर रहे आख्यान
प्रेम आचरण मैं उतर,हो जाए हरि गेह।



हिर्ण्याकश्यपु कंस भी, रावण था बलवान
धूल धूसरित हो गए,मिटी नेक पहचान,
 शिवि-दधीचि-सुकरात ने,जाने सुसदुपयोग
ये सब अब भी पा रहे,नित नूतन सम्मान।


आत्म वस्तु विख्यात है, सब में एक समान,
शक्ति लबालब सभी घट,तथ्य एक लें जान,
चींटी-हाथी-मनुज में, पंडित जन चांडाल,
सब में पुरुष समान वह,सद्गुरु वर्णित ज्ञान।


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