क्या श्राप देने से अनिष्ट होता है या किसी की मृत्यु हो सकती है

प्रश्न :- क्या श्राप देने से अनिष्ट हो सकता है या किसी की मृत्यु हो सकती है ?**ओ३म् सर्वज्ञ*
*वेद वरदान आर्य*


 उत्तर :-    श्राप शब्द शॉप से बना है संस्कृत के अनुसार शप + घञ् प्रत्यय से शॉप शब्द बनता है तथा रूपों के अनुसार अभिशाप शापित अभिशप्त आदि रूप बनते हैं जिनके अर्थ किसी के अनिष्ट की कामना से निकले शब्द को शाप या श्राप कहते हैं |


गौतम ऋषि के शाप से अहिल्या पत्थर हो गई अपनी पत्नी से कामासक्ता ऋषि को बाण लगते ही उसने पांडु को श्राप दिया कि पत्नी के सहवास से मृत्यु होगी करण ने झूठ बोलकर परशुराम से विद्या सीखी तो परशुराम ने शाप दिया कि समय आने पर यह विद्या तुम्हारे काम नहीं आएगी आदि |


क्या इस प्रकार से कहने पर निकली गई वाणी सत्य हो जाती थी  हां  ! हो जाती थी विज्ञान विरुद्ध कथन सत्य नहीं होता जैसे किसी का पत्थर हो जाना जो संभव है वह हो सकता था |


क्या सब की कही गई बात  सत्य होती थी  नहीं ! जिसका मन वाणी और शरीर से सत्य पालन करते करते परिपक्व अवस्था हो जाती थी तब उसके द्वारा कहां गया कथन  सत्य होता था इतना अवश्य है वह व्यक्ति परीक्षा पूर्वक संभव बात ही कहता था किसी का पत्थर हो जाना आदि असंभव नहीं |


जैसे ऋषि दयानंद जी ने कहा था अमीचंद तू है तो हीरा पर कीचड़ में पड़ा है यह सुनकर वह धार्मिक हो गया मन वचन कर्म में एकरूपता वाला व्यक्ति यदि किसी को कहेगा कि तु धार्मिक बन जा तो वह बन जाता है ऐसा व्यक्ति तब  कहता था या उसी व्यक्ति को कहेगा जिसके धार्मिक बनने के लक्षण हो गंदे संस्कार या गंदी संगति वाले से कहेगा ही नहीं सत्यवादी व्यक्ति लक्षण जानकर ही शाप देता था |


यह बात तो ठीक है सत्यवादी व्यक्ति का प्रभाव दूसरों पर पड़ता है परंतु प्रत्येक व्यक्ति पर नहीं पड़ता आज भी लक्षणों को देखकर बालक को कह देते हैं कि तू परीक्षा में अनुत्तीर्ण होगा या उत्तिर्ण होगा बस अंतर यह है कि हम लक्षणों का साक्षात्कार सत्यवादी की तरह नहीं कर पाते अतः हम संदेह के आधार पर कह देते हैं और सत्यवादी अनुमान प्रमाण के आधार पर कहते हैं इसलिए उनकी हर बात सत्य हो जाती थी  जैसे एक कुशल वैद्य किसी की दिनचर्या देखकर उसकी बीमारी का अनुमान लगा लेता है और उसे बोल देता है कि तुझे अमुक बीमारी होने वाली है तो यदि वह दिनचर्या परिवर्तन नहीं करता तो वह उस बीमारी से ग्रसित हो ही जाता है इसे ही श्राप देना कह देते थे |


इसमें एक बात और ध्यान देने की है कि यदि शापित व्यक्ति अपनी दिनचर्या को प्रयत्न पूर्वक परिवर्तन कर लेता था तो उसके विषय में कही गई बात भी असत्य सिद्ध हो जाती थी जैसे महाभारत में पांडू ने अपनी आयु को बढ़ा लिया था |


कलम से ....🖋 आचार्य धर्मपाल 
*लेखक   -  महर्षि दयानन्द स्वामी।*
*प्रस्तुति  - *वेद वरदान आर्य*


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