क्या हनुमान जी उड़कर समुद्र लांघ लंका पहुंचे थे





        सुन्दर काण्ड के पहले सर्ग में श्लोक संख्या १-९ – बाल्मीकि रामायण में हनुमान जी के उड़ने जैसा कोई वर्णन कहीं प्राप्त नहीं होता है –


      आखिर सच क्या है – आइये एक नजर बाल्मीकि रामायण के सुन्दर काण्ड के पहले सर्ग में श्लोक संख्या १-९ तक देखे और विचार करते हैं :


      जो हनुमान जी के उड़कर समुद्र लांघ कर लंका जाने की बात है वो भी एक मिथक ही है – यदि आप बाल्मीकि रामायण को पढ़े – तो सुन्दर काण्ड के पहले सर्ग में श्लोक संख्या १-९ – कृपया ध्यान दीजिये – इस रेफ को नोट कीजिये और जाकर चेक कीजिये – वहां वाल्मीकि जी लिखते हैं –


दुष्करं निष्प्रतिद्वद्वं चिकीर्षन्कर्म वानरः।
समुदग्रशिरोग्रीवो गवां पतिरिवाबभौ ।। १ ।।


पॢवग पॢवने कृतनिश्चयः।
ववृघे रामवृद्धयर्थे समुद्र इव पर्वसु ।। २ ।।


विकर्षन्नूर्मिजालानी बृहन्ति ळवणाम्भसि।
पुप्लुवे कपिशार्दूलो विकिरन्निव रोदसी ।। ३ ।।


मेरुमंदरसंकाशानुदगतांसुमहार्णवे।
अत्यक्राम्न्महावेगस्त रंगंगान्यन्निव ।। ४ ।।


तिमिनक्रझषाः कूर्मा दृश्यन्ते विवृतास्तदा।
वस्त्रापकर्षणेनेव शरीराणि शरीरिणाम ।। ५ ।।


येनासौ याति बलवान्वेगेन कपिकुञ्जरः।
तेन मार्गेण सहसा द्रोणिकृत इवार्णवः ।। ६ ।।


प्राप्तभूयिष्ठपारस्तु सर्वतः परिलोकयन्।
योजनानां शतस्यान्ते वनराजी ददर्श सः ।। ७ ।।


सागरं सागगनूपानसागरानूपजान्द्रुमान।
सागरस्य च पत्नीनां मुखान्यापि विलोकयत ।। ८ ।।


स चारुनानाविघरूपधारी परं समासाद्य समुद्रतीरम।
निपत्य तीरे च महोदधेस्तदा ददर्श लंकाममरावतीमिव ।। ९ ।।


(सुन्दर काण्ड सर्ग १ श्लोक संख्या १-९)


        अर्थ :


        बड़ा, कठिन, तुलना से रहित कर्म करना चाहता हुआ, ऊँचे सिर और ग्रीवावाला वानर सांड की तरह भासने लगा ।। १ ।।


       डोंगी से तैरने में निश्चय वाला, डोंगी से तैरने वालो में श्रेष्ठो से देखा हुआ वह पर्वो में समुद्र के तरह राम के अर्थवृद्धि को प्राप्त हुआ ।। २ ।।


        उस खारी जल में बड़े बड़े २ लहरो के समूहों को चीरता हुआ वह वानर श्रेष्ठ मानो द्यौ पृथ्वी पर (जल के फूल) बिखेरता हुआ खेवा करने लगा ।। ३ ।।


        मेरु मंदर के बराबर महासागर में उठती हुई लहरो को बड़े वेगवाला, मानो गिनता हुआ गया ।। ४ ।।


      (बल से जल उछलने पर) मछलिये, मगर, मच्छ, इस तरह नंगे हुए दीखते हैं जैसे वस्त्र के खींच लेने से शरीर धारियों के शरीर ।। ५ ।।


        बलवान वानर श्रेष्ठ वेग से जिस मार्ग से जा रहा था, उस मार्ग से समुद्र सहसा द्रोण की तरह होता जाता था (पानी में उसकी डोंगी के आकार बनते जाते थे) ।। ६ ।।


         बहुत बड़ा भाग पार करके सब और देखता हुआ वह सौ योजन की समाप्ति पर वन समूह को देखता भया ।। ७ ।।


        सागर, सागर के किनारे के देश, और उस देश में होने वाले वृक्ष और सागर की पत्नियें (नदियों) के मुहाने देखता भया ।। ८ ।।


        सुन्दर नानाविधरूप धारी वानर समुद्र के परले तीर पर पहुंचकर महासागर के किनारे पर उतरकर अमरावती के तुल्य लंका को देखता भया ।। ९ ।।


        इस सारे सर्ग से अधिकतर हनुमान जी का समुद्र को फांद कर पार होना पाया जाता है , जोकि असंभव है। और ये कोई मिथक अथवा लोकोक्ति बनायीं गयी लगती है – क्योंकि यहाँ सर्ग में ही स्वयं वाल्मीकि जी ने दूसरे श्लोक में हनुमान जी को डोंगी से तैर कर समुद्र पार करने का स्पष्ट इशारा किया है –


         पॢव = छोटी नौका – डोंगी अथवा आज के समय पर तेज वेग से पानी में चलने वाली “वेवरनर” जैसा कोई तीव्र वाहन –


         श्लोक ३ में लिखा है – “उस खारी जल में बड़े बड़े २ लहरो के समूहों को चीरता हुआ वह वानर श्रेष्ठ” – आप विचार करे – बिना जल में कोई नौका चलाये ये काम असंभव है।


       श्लोक ४ में लिखा है – “मेरु मंदर के बराबर महासागर में उठती हुई लहरो को बड़े वेगवाला, मानो गिनता हुआ गया” – स्वयं विचार करे – लहरे उठती रहती हैं समुद्र में – पर जैसे कोई “सर्फिंग” करने गया मनुष्य उन उठती लहरो के ऊपर संतुलन बनाकर वेग से चलता है – ठीक वैसे ही इस श्लोक में बताया गया – उड़ना नहीं बताया।


       श्लोक ४ में लिखा है – “बलवान वानर श्रेष्ठ वेग से जिस मार्ग से जा रहा था, उस मार्ग से समुद्र सहसा द्रोण की तरह होता जाता था (पानी में उसकी डोंगी के आकार बनते जाते थे) – इस श्लोक से तो सारी शंकाओ का पूर्ण समाधान ही हो गया – जब भी पानी पर डोंगी नाव कुछ भी चलेगी वो पानी को चीरकर आगे बढ़ेगी जिससे उस मार्ग में पानी का रास्ता कटता हुआ दिखेगा जो नाव अथवा डोंगी के आकार का ही होगा – अधिक विश्लेषण हेतु एक बार इस पोस्ट के साथ संलग्न चित्र को देखे –


       श्लोक 9 में लिखा है – “सुन्दर नानाविधरूप धारी वानर समुद्र के परले तीर पर पहुंचकर महासागर के किनारे पर उतरकर अमरावती के तुल्य लंका को देखता भया” – अब देखिये यहाँ स्पष्ट रूप से वर्णित है हनुमान जी समुद्र के पार लंका के किसी तीर (नदी अथवा समुद्र का किनारा) पर पहुंच कर लंका को देखने लगे।


     यहाँ विचारने योग्य बात यह है की यदि हनुमान जी उड़कर लंका गए होते तो किसी समुद्र किनारे उतरने की कोई आवश्यकता नहीं थी – वो सीधे ही लंका के महल पर उतरते – या फिर जहाँ माता सीता को रखा गया था उस अशोक वाटिका में उतरते –
अधिक जानकारी के लिए सुन्दर काण्ड के दुसरे सर्ग की श्लोक संख्या १-१७ भी पढ़ लेवे –


      यहाँ संक्षेप में बताता हु – वहां लिखा है –


      हनुमान जी नीले हरे घास के, उत्तम गंध वाले, मधु वाले और उत्तम वृक्षों वाले वनो के मध्य में से गया। (सुन्दर काण्ड सर्ग २ श्लोक ३)


     अब बताओ भाई – यहाँ स्पष्ट लिखा है वनो के मध्य में से गए – फिर उड़ कर वनो के ऊपर से क्यों नहीं गए ???????


     इसके आगे के श्लोको में भी हनुमान जी के उड़ने का कोई वर्णन नहीं बल्कि स्पष्ट लिखा है – वो चतुराई से कैसे लंका में दाखिल हुए – उसके लिए उन्हें शाम तक इन्तेजार करना पड़ा – यदि उड़ सकते होते तो शाम तक इन्तेजार करते क्या ????



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