कर्म, ज्ञान और भोग का रूप
कर्म, ज्ञान और भोग का रूप
(१) कर्म तो है उधार चलाना । ज्ञान है अन्दर सम्पत्ति का समेटना।
(२) कर्म तो माता है और भोग बछड़ा है। जैसे बछड़ा अपनी मां के पीछे भागता रहता है, ऐसे ही भोग कर्म के पीछे लगा रहता है। जिसके मारे (मन्द) हुए हैं, वह वैसा है जैसे बच्चे की मां मर गई हो और वह दूसरों के द्वारों का मोहताज हो।