कर्ज चिंता का मूल है तो चिंता ले जाती है चिता की और
कर्ज चिंता का मूल है तो चिंता ले जाती है चिता की और
कैफे डे को शायद हर कोई जानता हैमहंगी स्वादिष्ट काफी कुछ चुनन्दा लोगों के बीच बैठ कर उस का स्वाद लेने के लिये कभी न कभी हर शहर वासी शायद कैफे डे के काउंटर में अवश्य गया होगा |भारत के न केवल हर शहर में इस के शानदार कांउटर है, बल्कि विदेशों में भी है। कुल संख्या 1900 के करीब बताई जाती है। इन सब को शुरू करने वाले और चलाने वाले थे सिद्धार्थ, जिन को कि काफी किंग भी कहा जाता था। मजे की बात यह है कि इनका परिवार 140 वर्ष से काफी उगाने का ही काम कर रहा था और उनके चिकमंगलूर र्कनाटक, काफी के बहुत बड़े बड़े बगान है
मैने उनका जीवन पढ़ा व बहुत प्रभावित हुआ। उनमें आगे बढ़ने की एक ललक थीअपनी र्जमन यात्रा के दौरान उन्होने र्जमन में काम कर रही काफी चेन को देखा और मन बना लिया कि ऐसी ही काफी चेन वे भारत में भी बनायेंगे। और 10 सालों में ही कैफे डे जैसी कमपनी बना दी जिसके 1839 रैस्तरां हर शहर में है और विदेशों में भी है। यही नहीं वह इन्वैस्टमैंट बैंकर बनना चाहते थे, उस में भी नाम बनाया, अभी हाल में माइडं टरीडपदक जतमम नाम की कम्पनी में उन्होने कर्ज चुकता करने के लिये आनी हिस्सेदारी 3200 करोड़ रूप्ये में बेची। वह मलाया की तरह भाग नहीं गया बल्कि वह 3200 करोड़ उसने कर्ज चुकता करने में ही लगाया।
प्रश्न उठता है कि ऐसा व्यक्ति आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाये? उसका मुझे एक ही कारण लगा वह है, कर्जा लेने की आदत और आसानी से मिलने वाला कर्जा । शायद आपको मालुम न हो भारत के बैंको में ऐसी प्रथा बन गई थी कि नामी व्यक्ति को बिन मांगे भी कर्जा दिया जाता था और जरूरतमंद छोटे व्यक्ति को कपड़े उतरवाकर भी बहुत मुश्किल से उसकी सारी सम्पति गिरवी रखकर उसकी जरूरत का बहुत थोड़ा हिस्सा दिया जाता है। आज हमारे बैंक भी जो आर्थिक संगट में हैं वे इसी का शिकार हैसिद्धार्थ बहुत योग्य व्यक्ति थे उनके पास आगे बड़ने की योजनायें थी, उस की पूर्ती के लिये हर कोई उनको उधार बिन मांगे भी देता रहापरन्तु हर योजना पनपती नहीं, कई जगह साथ में काम करने वाले ठीक नहीं होते। हम हर जगह सफल नहीं होतेयही सब कुछ सिद्धार्थ के साथ भी हुआ|
यदि हम इस सारी घटना का अन्वेशन करें तो ऐसा लगेगा कि जो सिद्धार्थ की कर्ज के कारण हालत थी वही आजकल बहुतों की है फर्क यह है कि खुदकुशी जैसा कदम हजारों में एक ही उठाता है यह कर्ज लेने की संस्कृति पहले भी थी परन्तु बहुत तब और अव में बड़ा फर्क है। पहले छोटा आदमी, साहुकारों से अपनी जरूरत के कारण कर्ज लेता था। जरूरत ऐसी होती थी कि जिसका जीवन से सीधा सम्बन्ध होता था, जैसे फसल नहीं हुई, बेटी की शादी करनी है, कर्ज लेने वाला कर्ज देने वाले के नीचे दब कर रहता था। समाज में कर्ज देने वाले की इज्जत थी और कर्ज लेने वाले को इज्जत से नहीं देखा जाता था यहां तक कि अक्सर अपमान भी सहन करना पढ़ता था। परन्तु पिछले 50 वर्ष में सब कुछ बदल गयाअब कर्ज लेना शर्म की बात नहीं है, कर्ज लेने के लिये आपको प्रोत्साहित किया जाता है, अगर आदमी कर्ज नहीं लेगा तो इतने बैंक और फिनांस कम्पनियां कैसे चलेंगी, लाखों नोकरियां इस पर चल रही है। कर्ज देने वाला आपके घर आता है----अरे भाई साहब अभी तक स्कूटर पर ही घूम रहें हा, हम आपको पैसा देंगे बढ़िया सी कार लो। और देखते ही देखते पांच हजार की मंथली किस्त और तीन हजार कर पैर्टोल का खर्चा शुरू हो गया। इस में बुराई नहीं यदि कार आपकी आवश्यकता है और आप कर्ज बापिस करने के सक्षम हैंपरन्तु इतनी समझ हर ऐक में नहीं हाती। अधिक कर्ज आज आवश्यकता के लिये नहीं परन्तु दिखावे की वस्तुये खरीदने के लिये लिये लेते है। या फिर अनुभव की कमी के कारण आवश्यकता से अधिक आशावादी होकर लिये जातें हैंयह भी सत्य है कि व्यापार में हर बात आपके बस में नहींउदाहरण के लिये यदि आयात शुलक कम कर दिया जाता है जिस कारण विदश से आने वाला माल कम भाव पर उपलब्ध हो रहा है तो आपका माल कोन खरीदेगा और आप बैंक से लिया कर्जा कैसे बापिस करेंगे। परन्तु ऐसे कारण कम होते हैं, अधिक तो दिखावें की चीजों के लिये धूम धडक्के की शादी करने में बच्चों को विदेशों में भेजने के लिये कर्ज में लिया धन खर्चा कर देते हैं, और बाद में कर्ज चुकता करना मुश्किल हो जाता है।
कुछ भी कहें कर्ज न चुकाने की स्थिती में मानसिक दवाव तो होता ही हैइसे आप किस हद तक बरदसशत कर सकते हैं, यह आपकी मानसिक स्थिती पर निर्भ करता है। कुछ बिमारियों के शिकार भी हो जातें हैं। मैं तो यही सोचता हूं जब तक हो सके कर्ज से बचेंखास कर बच्चों के ऐशों आराम के लिये कर्ज न लेंबच्चे को कार चाहिये, फलैट लेना है तो खुद व्यवस्था करे पर आप कर्ज क्यों लें । शादियों के लिये भी कर्ज लेना ठीक नहीं। जिनना आप के पास है उसी में करें। कारण कर्ज की चिंता बहुत बुरी चीज है, आदमी आत्महत्या न भी करे परन्तु एक स्थिती ऐसा आ सकती है जब आप कर्जा चुकाने में अस्मर्थ महसेस करते हैं और कोई आप की सहायता नहीं करता यहां तक कि वे भी जिनके सुख के लिये आप ने कर्ज लिया था। आप असहाय महसूस कीते हैं और आप में हीन भावना आ जाती है, यही हीन भावना कई बार आत्महतया का कारण बन जाती है।