कैसी प्रार्थना करनी चाहिए ?
कैसी प्रार्थना करनी चाहिए ?
हम परमात्मा से दो प्रकार की प्रार्थना करते हैं । एक तो किसी अवगुण या शत्रु के दूर भगाने के लिए और दूसरी किसी गुण, कर्म या स्वभाव, वस्तु के प्राप्त करने के लिए । प्रथम अवस्था में तो हम जानते होते हैं कि कौन से अवगुण, दोष अथवा शत्रु हम अपने से दूर करना, या भगाना, या निकालना अथवा नष्ट करना चाहते हैं । परन्तु दूसरी दशा को नहीं जान सकते, कि कौनसा गुण, कर्म, स्वभाव और वस्तु हमारे लिए ऊंचा करनेवाले होंगे या हमारे लिए सूखकारी होंगे ? हमारी भलाई को समयानुसार-हमारा प्रभु ही जानता हैक्योंकि प्रभु सब की भलाई और कल्याण करनेवाला, तथा वह कभी किसी का अमंगल करता ही नहीं। इसलिए प्रार्थना करनेवाला भक्त है एवं सचमुच प्रभु पर विश्वास रखनेवाला सच्चा भक्त है--तो वह यही कहेगा"जो जो गुण, कर्म स्वभाव और वस्तु हमारे लिए कल्याणकारी हों-वे हमें प्रदान करें, इससे उसका निश्चय अधिक यह होगा-कि "प्रभो ! वही भद्र है जो तेरी इच्छा है'। जैसे हम प्रतिदिन कहते हैं-“ओ३म् विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद्भद्रं तन्न आसुव । हे सकल जगत् के उत्पत्तिकर्ता, समग्र ऐश्वर्ययुक्त, शद्ध स्वरूप, सब सुखों के दाता प्रभो ! हमारे सम्पर्ण दुर्गुण, दुर्व्यवसन दुर्वासनाओं, कुचेष्टा, कुसंस्कारों, दालों दर्दो, संकटों, कष्टों, क्लेशों और दुर्दिनों को कोजिए और तत्स्थान उत्तम गुणों, उत्तम कर्मों, उनी स्वभावों और श्रेष्ठ पदार्थों को प्रदान कीजिए यहां भद्र का अर्थ और ,भावना-प्रभ की मंगल : ही करनी चाहिए।