जन्मोंजन्म
जन्मोंजन्म
कितना मनहूस दिन था वो जब मैं इस घर में ब्याही आई थी । कई बार मन करता है जहर खा लूं । मेरा आदमी इस दुनिया का सबसे झल्ला आदमी है भाई साहब । इससे अच्छा तो मेरे बापू ने मुझे कुएँ में धक्का दे दिया होता । इस पपडगंज की वजह से एक-एक दिन इस नर्क में काटा है मैंने । इन 19 सालों में एक दिन भी ऐसा नही गया जब इसने मेरी आत्मा को शांति दी हो । इस कुक्कड़दास ने मेरा जीवन तबाह कर दिया । छोटे से लेकर बड़े तक , सारा मुहल्ला इस गंगूदास का मजाक करता है।
गंगा भाभी अपने दुःखों का रोना रोये जा रही थी । हालांकि उसकी भाषाशैली पर मुझे हंसी भी आती थी और दुःख भी मगर मामला क्योंकि गम्भीर था इसलिए मैं अपनी हंसी को दबाये बैठा रहा और गम्भीर मुद्रा बनाकर उसकी बातें ध्यान से सुनने लगा । मैं बहुत सालों बाद इस घर में आया था । इधर से जा रहा था तो सोचा मिलता चलूं । गंगा भाभी का बोलना जारी था -
भाई साहब ! मेरा पति इस दुनिया का विचित्र प्राणी है । गांव का निखट्टू से निखट्टू आदमी इसका दोस्त बना हुआ है । जिसे दुनिया में कोई आदर नही देता उसे भी मेरा यह हीरालाल पूरा आदरमान देता है । सब्जी मंडी के सारे दुकानदार मेरे इस धन्नासेठ को देखकर खुश हो जाते हैं । इसे वो लोग नाम लेकर आवाजें दे देकर बुलाते हैं । जिस खराब हुई सब्जी को कोई ग्राहक नही खरीदता उसे यह मेरा गंगाधर सीने से लगाकर घर ले आता है । किसी दुकानदार को नाराज नही करता । सब इसे देखकर खुश हो जाते हैं और बाद में इसका मजाक करते हैं । चार-चार जोड़ी जूते की है साहब के पास मगर धन्नो के बेटे की बारात में चप्पल पहन कर चले गए । हाय ! मैं फांसी लगा लूं या जहर खा लूं ?
मैं चुपचाप बैठा हुआ उन प्रभावी शब्दों का चयन कर रहा था जिससे गंगा भाभी को उचित सांत्वना दी जा सके मगर गंगा कुछ बोलने दे तब न , वह तो आज रुकने का नाम ही न लेती थी । इतने में गंगा की बेटी सपना दूध ले आई और मैं दूध पीने लगा । गंगा का बोलना जारी था -
पूरे मुहल्ले में किसी बच्चे को चोट लग जाये तो उसे डॉक्टर के पास ले जाने की पूरी जिम्मेदारी मेरे इस फालतूदास की होती है । भाई साहब ! गली में छोटे-छोटे बच्चों के साथ खेलने लग जाते हैं गिल्ली-डंडा । हाय ! मेरा जिया जल जाता है मगर इसे कोई परवाह नही । परसों कमला के बेटे को खेलते हुए टांग पर हल्की चोट लग गई , उसे मेरे ये पतिदेव कंधे पर उठाए डॉक्टर के पास ले गए , इनके पीछे-पीछे सारे बच्चे चल रहे थे और बाद में मेरे दानवीर ने पैसे भी अपनी जेब से दिए । हाय मेरे भगवान ! ये नमूना मेरे लिए ही सम्भाल कर रखा था जिसे कोई काम नही और सारा गांव जिसकी मूर्खता का फायदा उठाये । भाई साहब ! मैं तो हैरान हूं कि भगवान ऐसे आदमी को उठाता।
गंगा का गला भर आया और आंखों से अक्षुधारा बरसने लगी । अपने पल्लू से मुंह छिपाए हुए नीची गर्दन करके वो सुबकने लगी । काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा । मैं सोच रहा था कि इस ओरत को अपने पति से कितनी नफरत है , इसके बाद भी यह घर चल रहा है । जरूर यह महिला एक दिन तलाक ले लेगी या आत्महत्या कर लेगी । काफी देर के सन्नाटे के बाद गंगा ने फिर बोलना शुरू किया मगर अबकी बार अक्षु पूरित नेत्रों में गौरव भार था । वे बोली -
कुछ भी कहो भाई साहब ! सपना का बापू देवता इंसान है । ऐसे पूज्य पुरुष को पति के रूप में पाकर मैं धन्य हो गई । मुहल्ले की महिलाएं कहती हैं कि हमने कभी सपना के बापू को घूरते नही देखा , सामने सीधी गर्दन करके चलते हैं , कोई ताक-झाक नही , ऐसे सच्चरित्र पुरुष को भगवान लंबी उम्र दें ।।।।। मेरे भोलेनाथ दिल के बड़े सच्चे और नेक हैं । अब तो ऐसा लगता है कि मेरे धन्यभाग जो इस घर में आई ।
गंगा अपने जीवन साथी को अभय-दान दे रही थी । उसके प्राणों से पति परमेश्वर के लिए शुभाशीष निकल रहे थे । उसे अपने पति के उज्ज्वल चरित्र पर गर्व था जिसका उसके रक्तिम मुखमण्डल पर गौरव-भार था । वह अपनी पूण्य-तपनोष्मा से निज प्राणनाथ की जीवनधारा को बलवती किये जाती थी। चिर-सौभाग्यवती वह भारतीय नारी भगवान से प्रार्थना कर रही थी , हे दयालु प्रभु ! अगले जन्म भी मैं इसी पूज्य पुरुष को अपने पति के रूप में पाऊं , जन्मोंजन्म , सातों जन्म रे ।