जग श्यामल कर्म निशाचर से , उजला तन वेश विकार मढ़े !

|| दुर्मिल सवैया ||


जग श्यामल कर्म निशाचर से , उजला तन वेश विकार मढ़े !
हर तंत्र क्रिया रत शोषण में, गुमनाम सदा बल भैंट चढ़े !
फँस जाल सशक्त समाज दशा, जड़ निष्प्रभ काल सदैव गढ़े !
गुरु माधव मुक्ति निहाल धरा , छल राग नही उर प्रेम बढ़े !!


खग कंठ सुकोमल राग भरा, नव चेतन भोर सुगंधित है !
यह सृष्टि अनंत प्रकाश मयी, सुख वैभव शासन चित्रित है !
उर फैल रही प्रभु पावनता ,पल प्रेम उदार प्रबन्धित है !
गुरु आँगन छाँव विशाल रही , अनुगुंजित प्राण प्रफुल्लित है !!


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