इन्द्रियदमन का उपाय

इन्द्रियदमन का उपाय



      भोजन खाने-बनाने का भाव तीन प्रकार का होना चाहिए । (१) भोजन इसलिये बनाया जावे कि इन्द्रियों का दमन हो सके । तब भोजन बनाने में भी दमन शमन वृत्ति से बनाया जावे। तथा स्वयं वस्तू, जो बनाई जावे, वह वस्तु भी दमन करने में सहायक हो। एवं खाया भी दमन से जावे। इतनी बातें हों-तब मनुष्य भोजन के द्वारा इन्द्रियों का दमन कर सकता है जो मनुष्य भोजन को प्याज और मसाले से स्वादिष्ट बनाना चाहता है-वह खानेवाले को कब दमन वृत्ति पैदा करने देगा ? तथा खानेवाला दमनवृत्ति से खाएगा भी कैसे ? वह तो लोभवशात् अधिक खा जायेगा। स्वाद लेता रहेगा और दमन टूटता जाएगासात्विक पदार्थ सात्विक भाव से बनाये गए हो-दमन में सहायता देते हैं। जैसे कोई नाजुक काम करनेवाला उधर ही वृत्ति को जोड़े रखता है, दूसरी ओर नहीं जाने देता-कि काम बिगड़ न जाए। ऐसे जो मन भोजन बनाने में वृत्ति एक करके भोजन को अतीत मूल्यवान् कार्य जानकर बनाता है-वह भोजन अवश्य मेव खानेवाले को दमन की प्राप्ति कराता है ।


      (२) दानभाव रखकर बनाना--खाना चाहिये। जब भोजन खावे-तो पूर्व उसके दानभाग निकाला जावे, और फिर खाया जावे। तथा उस भोजन को खानेवाला, भोजन को प्रभु का दान समझकर खायेतब मनुष्य में दान-वृत्ति जागृत होती है तथा धन्यवाद वृत्ति बढ़ती है। एवं वह स्वयं भी लोगों के धन्यवाद का पात्र बन जाता है।


      (३) दयाभाव से बनाया हुआ, दयाभाव से खाया हुआ, दयाभाव से खिलाया हुआ और शान्तचित्त से खाया हुआ अन्न, दया पैदा करता है। जलते-बल्ते जो भोजन बनाया जाता है-वह खानेवाले को दया कब दे सकता है ?


      (४) अन्न का बोना सरल है, परन्तु भूमि का बनाना कठिन है । ऐसे ही भोजन का खाना सहज परन्तु बनाना (पकाना) कठिन काम है।


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