होनहार का उत्साह बढ़ाओ
होनहार का उत्साह बढ़ाओ
होनहार बालक पढ़कर जब विद्यालय से आते हैं तो घर में बाहर के पाए व्यक्तियों को देखकर बिना विश्राम किये, या रोटो मांगे-बड़ी रुचि से अपनी विशेषता गुण) स्वयं दिखाने लग जाते हैं । या तो पुस्तक खोल कर पढ़ने लग जाते हैं या झटपट तख्ती निकालकर लिखने लग जाते हैं या तख्ती धोने (साफ करने) लग जाते हैं। यह उनके मन में उमंग होती है कि देखनेवाले उसको शाबाश दें, उत्साह बढ़ावें, प्रशंसा करेंइससे उनमें जागृति और अधिक परिश्रम-वृत्ति आजाती है। यह चिह्न बचपन का है और प्राकृतिक है । और इसी प्रकार जो साधक नई साधना या अभ्यास में लगता है और उसे रुचि होती है, लगन से प्रभुचरणों में बैठता है तो वह भी समय असमय का ध्यान न करकेअपने कार्यक्रम को दिखाना चाहता है । जब किसी नए सज्जन का संग पाता है, उसका भी हार्दिक भाव उसे दिखाने का होता है कि वह यह समझे कि यह व्यक्ति बड़ा अभ्यासी और प्रभुभक्त है । यह चिह्न भी उसके बचपन का है, आध्यात्मिकता के बचपन का है इसलिए यदि कोई अभ्यासो ऐसा करता है तो देखनेवालों को ग्लानि नहीं करनी चाहिए। ताना देना या उलटी राय नहीं रखनी चाहिए। उसे इस क्षेत्र में बच्चा समझकर यह क्रिया उसकी प्राकृतिक समझनी चाहिए।