हिन्दुओं को मुस्लमान बनाने के "सेक्युलर" उपाय

हिन्दुओं को मुस्लमान बनाने के "सेक्युलर" उपाय

8 वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन क़ासिम से आरम्भ हुई इस्लामिक आंधी, गौरी,गजनी, तैमूर लंग आदि से होती हुई 17 वीं शताब्दी में नादिर शाह तक चली। यह मतान्धता करीब 1000 वर्षों तक भारत जैसे शांतिप्रिय देश कि आत्मा को प्रताड़ित करती रही जिसका परिणाम करोड़ो निरपराध लोगों कि हत्या, लाखों स्त्रियों के साथ बलात्कार और लाखों के जबरन धर्मान्तरण के रूप में निकला। कुछ इतिहासकार विदेशी हमलावरों को हमलावर लुटेरे,दुर्दांत आदि कहकर अपना पल्ला झाड़ने का प्रयास करते हैं मगर यह कटु सत्य हैं कि ये लुटेरे एक हाथ में तलवार तो दूसरे हाथ में कुरान लेकर निकले थे और देश को लूटने के साथ साथ इनका उद्देश्य हिन्दुओं को मुसलमान बनाना भी था। जब लुटेरे लूट कर चले जाते तो पीछे से हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित करने का कार्य कौन करता था? इस लेख के माध्यम से इसी शंका का समाधान करेंगे।

मध्य काल में हमारे देश में अनेक मत-मतान्तर प्रचलित हुए जैसे खोजा,आगा खानी, परनामी, सत्पंथ, बोहरा आदि। इन सभी सम्प्रदायों ने कट्टर इस्लाम के स्थान पर माध्यम मार्ग को चुना। ये एक दो रीति रिवाज़ हिन्दुओं के अपना लेते जैसे मदिर बनाना, आरती करना, भजन गाना आदि और बाकि रस्में मुसलमानों से उधार ले लेते जैसे एक ही अल्लाह, कलमा पढ़ना, दाह संस्कार के स्थान पर मृतक को गाड़ना, रोजे रखना, चमत्कार में विश्वास, पीर-फकीर को सबसे बड़ा मानना आदि। इस मध्य मार्ग का परिणाम यह हुआ कि इस्लामिक चोट से घायल हिन्दू जनमानस को मरहम लगाने जैसा कार्य किया। हिन्दू समाज का मार्गदर्शन करने वाले गुरुओं, मठों-मंदिरों को लुटेरो द्वारा मिटटी में मिला देने के कारण नेतृत्व विहीन जनता को आसानी से भ्रमित किया जा सकता था। इसका परिणाम यह निकला की जो काम तलवार इतना व्यापक स्तर पर न कर पाई वह कार्य इन छदम प्रचारकों ने कर दिया। करोड़ो हिन्दुओं को विधर्मी बनाने और 1947 के विभाजन के पश्चात भी यह मानसिकता नहीं बदली और आज भी उसी प्रकार से लागु हैं। इसे हम हिन्दुओं को मुस्लमान बनाने के "सेक्युलर" उपाय कहे तो अतिश्योक्ति नहीं कहलायेगा।

इस लेख  में इन तरीकों का वर्णन करेंगे

1. कब्र पूजा- भारत वर्ष में जितनी कब्रें देखने को मिलती हैं वे सभी मुस्लिम लुटेरों अथवा उनके साथ आये सिपाहियों या सलाहकारों की होती है जैसे अजमेर कि दरगाह मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है जो मुहम्मदी गौरी का सलाहकार था और उसने अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के इस्लामिक तलवार से हारने की भविष्यवाणी करी थी। एक अन्य उदहारण बहराइच में सालार गाजी मियां कि दरगाह है जो हिन्दू राजा सोहेल देव से लड़ते हुए मारा गया था। बॉलीवुड का कोई प्रसिद्द अभिनेता अभिनेत्री अथवा क्रिकेट के खिलाड़ी अथवा राजनेता चादर चदाकर अपनी फिल्म को सुपर हिट करने की अथवा आने वाले मैच में जीत की अथवा आने वाले चुनावो में जीत की दुआ मांगता रहा हैं। भारत की नामी गिरामी हस्तियों के दुआ मांगने से साधारण जनमानस में एक भेड़चाल सी आरंभ हो गयी है की अजमेर में दुआ मांगे से बरकत हो जाएगी , किसी की नौकरी लग जाएगी , किसी के यहाँ पर लड़का पैदा हो जायेगा , किसी का कारोबार नहीं चल रहा हो तो वह चल जायेगा, किसी का विवाह नहीं हो रहा हो तो वह हो जायेगा।   कब्र पूजा को हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल और सेकुलरता की निशानी बताना हिन्दुओ को अँधेरे में रखना नहीं तो ओर क्या है? कब्र पूजा से प्रभावित होकर अनेक हिन्दू मुस्लमान बन जाते हैं जैसा प्रसिद्द संगीतकार ए आर रहमान के विषय में देखा गया।  कितने पाठक इसे हिन्दुओं को मुस्लमान बनाने के "सेक्युलर" उपाय मानेगे?

2. बॉलीवुड और लव जिहाद- बॉलीवुड कि फिल्मों में देखने में आता हैं कि सभी प्रमुख अभिनेता मुस्लमान होते हैं जिनके नाम के आगे 'खान' लिखा होता हैं और वे प्राय: हिन्दू लड़की से शादी करते हैं जैसे शाहरुख़ खान द्वारा गौरी से विवाह करना आदि। प्राय: देखा गया है कि युवा हिन्दू लड़कियों के अपरिपक्व मस्तिष्क पर फिल्मी सितारों का व्यापक प्रभाव होता है। एक अनपढ़ टायर पंक्चर लगाने वाला, दर्जी, नाई जैसे छोटे काम करने वाला मुस्लिम लड़का अपने खान नाम के कारण उन्हें हीरो लगने लगता हैं। वह हिन्दू लड़की बचपन से भली प्रकार से पाल रहे अपने माता पिता को छोड़कर उसके साथ भाग जाती हैं। इसे सेक्युलर मानिसकता को पोषित करने वाले बुद्धिजीवी हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक, गंगा-जमुना की मिलीजुली संस्कृति कह कर प्रचारित करते हैं। जबकि मुस्लिम समाज अपनी लड़कियों को हिन्दू युवकों के संग विवाहित करने में जबरदस्त प्रतिरोध करता हैं। तब इनमें से एक भी छदम बुद्दिजीवी अपना मुख नहीं खोलता। कितने पाठक इसे हिन्दुओं को मुस्लमान बनाने के "सेक्युलर" उपाय मानेगे?

3. शिरडी के साईं बाबा- हिन्दू समाज के साथ सबसे बड़ी विडम्बना यही हैं कि उसे यह भी नहीं मालूम की उसके लिए उपास्य कौन हैं एवं उसकी उपासना कैसे करे। आज के युग की सबसे बड़ी त्रासदी देखिये कि आर्य जाति के महान गौरव मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम एवं योगिराज श्री कृष्ण जी महाराज द्वारा स्थापित पुरुषार्थ एवं कर्मफल व्यवस्था के सत्य सन्देश को भूलकर हिन्दू समाज चमत्कार रूपी भ्रान्ति के पीछे अँधा होकर भाग रहा हैं। उसे यह भी नहीं ज्ञात कि साईं बाबा का असली नाम चाँद मुहम्मद था, वह मस्जिद में रहता था, पाँच टाइम का नमाजी था, मांस मिश्रित बिरयानी खाता था आदि। साईं बाबा के चक्कर में हिन्दू समाज अपने अराध्य देवों को भूल गया हैं। कितने पाठक इसे हिन्दुओं को मुस्लमान बनाने के "सेक्युलर" उपाय मानेगे?

समझदार पाठक इस सुनियोजित षड़यंत्र के विरुद्ध अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे। अपने परिवारजनों,मित्रों और सगे सम्बन्धियों को इस भ्रान्ति से अवश्य अवगत करवाये।


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