गुण योग्यता विद्या बल

       


       जब व्यक्ति को कुछ गुण योग्यता विद्या बल बुद्धि सत्ता अधिकार आदि कुछ संपत्तियां प्राप्त हो जाती हैं, तो स्वाभाविक है , कि इन चीजों का उसे अभिमान भी हो जाता है। अभिमान होने पर सबसे पहली हानि यह होती है कि उसकी बुद्धि ठीक काम नहीं करती। बुद्धि बिगड़ती है। 
       वास्तव में यह दोष बुद्धि का नहीं है। यह दोष आत्मा का ही है। आत्मा स्वयं में अभिमान उत्पन्न करके बुद्धि का नियंत्रण खो देता है, और वह बुद्धि से गलत निर्णय करने लगता है। तो सारी परिस्थिति का दोषी तो आत्मा ही है। बुद्धि का तो हम गौण रूप से नाम ले देते हैं, क्योंकि निर्णय लेने में बुद्धि का सहयोग लेना पड़ता है। इसलिए मोटी भाषा में कह देते हैं कि उसकी बुद्धि बिगड़ गई। जबकि दोष वहां आत्मा का ही है, बुद्धि का नहीं। बुद्धि जड़ वस्तु है उसका कोई दोष नहीं है। आत्मा चेतन है, उसी का दोष है।
       अब जो लोग अभिमान करते हैं, उनकी बुद्धि बिगड़ जाती है, और वे गलत निर्णय लेते हैं। आगे चलकर उसका परिणाम यह होता है कि वे लोग बहुत दुख उठाते हैं। 
      *जो अभिमान नहीं करते, ईश्वर समर्पित होकर चलते हैं, वे इस अभिमान के दोष से बचे रहते हैं, उनका भविष्य सुखमय होता है*.


        इसलिए यदि आप भी अभिमान से बचना चाहते हों, तो ईश्वर समर्पित होकर चलें, और यह सोचें, कि यदि  हम न होते, ईश्वर की स्तुति प्रार्थना उपासना न करते, तो इससे ईश्वर को कोई हानि नहीं थी। वह तो सदा आनंद में था, है, और आगे भी रहेगा। परंतु यदि ईश्वर न होता, तो हमारा कुछ नहीं हो पाता। न हम होश में आ पाते। न कर्म कर पाते। न सुख भोग पाते।  हमारा कुछ भी कल्याण नहीं हो पाता। ऐसा सोचने से आपके अभिमान का नाश होगा। ईश्वर समर्पण बढ़ेगा, और आप का आनंद भी बढ़ेगा।


- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


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