गृहस्थाश्रम की सफलता के उपाय (विवाह के प्रकार)
गृहस्थाश्रम की सफलता के उपाय
विवाह के प्रकार
विवाह आठ प्रकार के होते हैं- एक ब्राह्म, दूसरा दैव, तीसरा आर्ष, चौथा प्राजापत्य, पाँचवाँ आसुर, छठा गान्धर्व, सातवाँ राक्षस एवं आठवाँ पैशाच।
इन विवाहों की यह व्यवस्था है कि वर कन्या दोनों यथावत् ब्रह्मचर्य से पूर्ण विद्वान्, धार्मिक और सुशील हों, उनका परस्पर प्रसन्नता से विवाह होना 'ब्र्राह्म' कहलाता है। विस्तृत यज्ञ करने में ऋत्विक् कर्म करते हुए जामाता को अलंकार युक्त कन्या का देना ''दैव'', वर से कुछ लेकर विवाह होना ''आर्ष'', दोनों का विवाह धर्म की वृद्धि के अर्थ होना ''प्राजापत्य'', वर और कन्या को कुछ दे के विवाह होना ''आसुर'', अनियम- असमय किसी कारण से वर कन्या का इच्छापूर्वक परस्पर संयोग होना ''गान्धर्व'', लड़ाई करके बलात्कार अर्थात् छीन-झपट वा कपट से कन्या का ग्रहण करना ''राक्षस'', शयन व मद्यादि पी हुई पागल कन्या से बलात्कार संभोग करना ''पैशाच'' विवाह कहलाता है। इन सब विवाहों में ब्राह्म विवाह सर्वोत्कृष्ट, दैव और प्राजापत्य मध्यम, आर्ष आसुर और गान्धर्व निकृष्ट, राक्षस अधम और पैशाच महाभ्रष्ट है, इसलिए यही निश्चय रखना चाहिए कि कन्या और वर का विवाह के पूर्व एकान्त में मेल न हो, क्योंकि युवावस्था में स्त्री-पुरुष का एकान्तवास दूषणकारक है।