गृहस्थाश्रम की सफलता के उपाय (विवाह-प्रयोजन)

गृहस्थाश्रम की सफलता के उपाय


विवाह-प्रयोजन


        स्त्री और पुरुष की सृष्टि का यही प्रयोजन है कि वे धर्म से अर्थात् वेदोक्त रीति से सन्तानोत्पत्ति करें। ईश्वर के सृष्टि क्रमानुकूल स्त्री-पुरुष का स्वाभाविक व्यवहार रुक ही नहीं सकता, सिवाय वैराग्यवान् पूर्ण विद्वान् योगियों के। संसार में व्यभिचार और कुकर्म को रोकने का श्रेष्ठ उपाय ही है कि जो जितेन्द्रिय रह सकेंगे, वे विवाह न करें तो भी ठीक, परन्तु जो ऐसे नहीं हैं, उनका वेदोक्त रीति से विवाह अवश्य होना चाहिये। आपात्काल में नियोग भी आवश्यक है। इसी प्रकार से व्यभिचार न्यून तथा प्रेम से उत्तम सन्तान और स्वस्थ मनुष्यों की वृद्धि सभव है।


 


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