गृहस्थाश्रम की सफलता के उपाय 


गृहस्थाश्रम की सफलता के उपाय 




          वैदिक आश्रम मर्यादा में गृहस्थाश्रम दूसरा आश्रम है। इसे यदि चारों आश्रमों का आधार कहा जाये तो अत्युक्ति न होगी। इस आश्रम की सफलता के लिए आवश्यक है कि आश्रम में प्रवेश के इच्छुक यथावत् ब्रह्मचर्य में आचार्यानुकूल वर्त कर, धर्म से चारों वेद या तीन या फिर दो अथवा एक वेद को सांगोपांग पढ़कर अखण्डित-ब्रह्मचर्य से युक्त पुरुष वा स्त्री गुरु की यथावत् आज्ञा लेकर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अपने वर्णानुकूल सुन्दर-लक्षणायुक्त कन्या से विवाह करें।


         उत्तम कुल के लड़के और लड़कियों का आपस में विवाह होना चाहिए। जो कुल सत्क्रिया से हीन और सत्पुरुषों से रहित हों तथा जिनमें बवासीर, क्षय, दमा, मिरगी, श्वेतकुष्ठ और गलित कुष्ठाादि भयानक रोग हों, उनकी कन्या या वर के साथ विवाह होना अनुचित है, क्योंकि इस प्रकार के विवाहों से ये सब दुर्गुण और रोग अन्य कुलों में भी प्रविष्ट हो जाते हैं।


         कन्या पिता के गोत्र की नहीं होनी चाहिए तथा माता के कुल की छः पीढ़ियों मेंाी न हो। साथ ही कन्या का विवाह दूर देश में होने से हितकारी होता है, निकट रहने में नहीं। दूरस्थों के विवाह में अनेक लाभ हैं तथा निकट विवाह होने में अनेक हानियों की सभावना रहती है।


        जब स्त्री-पुरुष विवाह करना चाहें, तब विद्या, विनय, शील, रूप, आयु, बल, कुल, शरीर का परिमाण आदि यथायोग्य होना चाहिये। जब तक उपर्युक्त गुणों में मेल नहीं होता, तब तक गृहस्थाश्रम में कुछ भी सुख नहीं मिलता।


         बाल्यावस्था में तो विवाह करने से सुख होता ही नहीं। जिस देश में ब्रह्मचर्य-विद्या-ग्रहण रहित बाल्यावस्था हो और जहाँ अयोग्यों का विवाह होता है, वह देश दुःख में डूब जाता है तथा जिस-जिस देश में विवाह की श्रेष्ठ विधि और ब्रह्मचर्य-विद्यायास अधिक होता है, वह देश सुखी और समृद्ध होता है। सोलहवें वर्ष से लेकरचौबीसवें वर्ष तक कन्या और पच्चीसवें वर्ष से लेक रअड़तालीसवें वर्ष तक पुरुष का विवाह-समय उत्तम है। इसमें जो सोलह और पच्चीस वर्ष में विवाह करें तो निकृष्ट, अठारह वर्ष की स्त्री, तीस, पैंतीस व चालीस वर्ष के पुरुष का विवाह मध्यम तथा चौबीस वर्ष की स्त्री और अड़तालीस वर्ष के पुरुष का विवाह होना उत्तम है।


         ब्रह्मचर्य विद्या के ग्रहणपूर्वक, विवाह के सुधार ही से, सब बातों का सुधार और बिगाड़ने से बिगाड़ हो जाता है।


         चाहे लड़का-लड़की मरण पर्यन्त कुँवारे रहें, परन्तु असदृश अर्थात् परस्पर विरुद्ध गुण-कर्म-स्वभाव वालों का विवाह काी न होना चाहिए।



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