गृहस्थ - गीता
गृहस्थ - गीता
आतिथ्य घर का वैभव है।
प्रेम घर की प्रतिष्ठा है।
व्यवस्था घर की शोभा है।
सदाचार घर की महक है।
समाधान घर का सुख है।
उतना खर्च न करें कि कर्ज लेना पड़े।
ऐसी आमदनी न करें कि पाप करना पड़े।
ऐसी वाणी न बोलें कि क्लेश पैदा हो।
इतना न खायें कि बीमार पड़ जायें।