ईश्वर की कृपा से

        ईश्वर की कृपा से


             ईश्वर की कृपा से मनुष्य को संसार में बहुत सी सुविधाएं और संपत्तियां मिलती हैं। अच्छे माता पिता धन बल विद्या बुद्धि साहस शौर्य चातुर्य इत्यादि। ईश्वर ने तो मनुष्यों के कर्मों के अनुसार उनको ये फल दिए। और इसलिए दिए कि मनुष्य लोग इन संपत्तियों का आगे सदुपयोग करें।
             परंतु यह एक सामान्य स्वभाविक बात है कि जब व्यक्ति के पास उपर्युक्त संपत्तियाँ आ जाती हैं, तो उसमें अभिमान नामक दोष उत्पन्न  हो जाता है। ईश्वर समर्पण के माध्यम से इस अभिमान रूपी दोष का विनाश करना चाहिए। यह इसका उपाय है। 
           जो लोग ईश्वर समर्पण करते हैं वे इस दोष से छूट जाते हैं। जो लोग समर्पण नहीं करते, वे अभिमान से ग्रस्त होकर सबसे पहले अपनी बुद्धि का विनाश कर लेते हैं। और बुद्धि का विनाश होने पर धीरे-धीरे ये सब संपत्तियाँ भी नष्ट हो जाती हैं। इसलिए ईश्वर प्रदत्त इन संपत्तियों का कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए।
           जो लोग अभिमान करते हैं, उनका अभिमान भी बहुत दिन तक नहीं रहता। क्योंकि संपत्तियाँ भी सदा रहने वाली नहीं हैं। अभिमान के कारण दुष्ट आचरण होता है। फिर उससे धीरे-धीरे ये सब संपत्तियाँ नष्ट होती जाती हैं, या बहुत कम रह जाती हैं। तब व्यक्ति को होश आता है, कि *मैंने अभिमान किया, यह ठीक नहीं किया। आज मेरे पास कुछ भी नहीं रहा अथवा बहुत कम रहा। इसलिए अभिमान से बचें। ईश्वर समर्पित होकर अपना जीवन जीएँ। आपका जीवन सुखमय होगा.


- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।