ईश्वर


       प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर की सहायता से जी रहा है। उसके पास जितना भी ज्ञान बल आनंद न्याय सेवा परोपकार धन संपत्ति परिवार आदि जो भी योग्यताएं हैं, वे सब ईश्वरीय व्यवस्था से उसे प्राप्त हुई हैं।
 यह ठीक है कि प्रत्येक व्यक्ति कर्म करता है, और ईश्वर उसके कर्म अनुसार उसे फल देता है। परंतु लोग प्रायः यह बात भूल जाते हैं कि वे जो भी कुछ कर्म कर पाते हैं, उसमें भी ईश्वर की सहायता अत्यधिक होती है। उसके बिना वे कुछ भी नहीं कर सकते।
       ईश्वरीय संपत्तियों को प्राप्त करके इन को आधार बनाकर आप और अधिक उन्नति कर सकते हैं. बहुत अधिक सुख प्राप्त कर सकते हैं. यहां तक कि सारे दुखों से छूट कर मोक्ष तक भी पहुंच सकते हैं. इसलिए इन संपत्तियों का अभिमान न करें , अन्यथा यह बहुत हानिकारक होगा और भविष्य में आपका दुख अत्यंत बढ़ जाएगा।
       यदि ईश्वर आपको शरीर मन बुद्धि इंद्रियां पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश अनाज फल फूल शाक सब्जी जड़ी बूटियां औषधियाँ वनस्पतियां इत्यादि पदार्थ न देता, तो आप होश में भी नहीं आते , और प्रलय में बेहोश ही पड़े रहते हैं। ऐसी स्थिति में आप कुछ न कर्म कर पाते, न ही उन कर्मों का फल भोग पाते। 
      तो सारी बात का सार यह हुआ कि, आज आप जो कुछ भी हैं, जितने भी योग्य हैं, उसमें ईश्वर की कृपा का बहुत बड़ा योगदान है. 
       इसलिए इस सत्य को समझने का प्रयत्न करें। और ईश्वर समर्पित होकर चलें। इस सत्य को स्वीकार करने से आपका आनंद बढ़ेगा, जीवन संतुलित और सुखमय बनेगा।


- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


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