दो मनुष्य ऐसे नहीं मिलते,  जिनके विचार 100% एक समान हों

दो मनुष्य ऐसे नहीं मिलते,  जिनके विचार 100% एक समान हों


          संसार में कोई भी दो मनुष्य ऐसे नहीं मिलते,  जिनके विचार 100% एक समान हों। चाहे दो भाई हों, दो बहने हों, माता पिता हों, पति पत्नी हों, दो मित्र हों, गुरु एवं शिष्य हों, या कोई भी हों। किन्हीं भी दो व्यक्तियों के विचार 100% एक जैसे नहीं होते। 
          कहीं ना कहीं विचारों में अंतर या टकराव होता ही है. इसका कारण है, पूर्व जन्मों के हर व्यक्ति के अपने संस्कार अलग-अलग होते हैं , अलग-अलग परिवारों में बच्चों का विकास अलग-अलग ढंग से होता है, उनके माता-पिता अलग होते हैं,  खानपान अलग होता है, धन-संपत्ति कम अधिक होती है,सुविधाएं अलग अलग होती हैं, इत्यादि कारणों से विचारों में भेद आ जाता है। परिवारों के अपने धार्मिक विचार संस्कार भी अलग-अलग होते हैं, उसके कारण भी विचार भेद होता है। यह सब होता ही है।
          इस को ध्यान में रखते हुए जब हम आपस में एक दूसरे के साथ व्यवहार करते हैं, तो अनेक जगह पर विचारों में टकराव होता है, और वह
 होता ही रहेगा। 
           विचारों की भिन्नता के कारण व्यवहार भी अलग अलग हो जाता है। अर्थात एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति का व्यवहार 100% अनुकूल नहीं पड़ता । जहां जहां दूसरे व्यक्ति का व्यवहार आपके अनुकूल नहीं होता, वहां आप या तो चुप रह जाते हैं, सहन कर लेते हैं, या उसको शिकायत करते हैं, कि आपका व्यवहार ठीक नहीं है, इसे ठीक कर लेवें।
           यदि आप वहाँ चुप रह जाते हैं, तो इससे 2 हानियां होती हैं। एक - गलत व्यवहार करने वाले को पता नहीं चलता, कि मैं गलती कर रहा हूं। दूसरा - आपको हानि होती है कि आप उसके गलत व्यवहार को मन ही मन बार-बार दोहराते हैं और लंबे समय तक दुखी होते रहते हैं। 
तो किसी के गलत व्यवहार को अथवा ऐसे व्यवहार को जो आपको पसंद नहीं है, उसको यदि आप चुपचाप सहन कर लेते हैं, तो इससे धीरे-धीरे आपको डिप्रेशन हो सकता है, आप में चिड़चिड़ापन हो सकता है , आगे चलकर पागलपन भी हो सकता है , और आप उस पागलपन में आत्महत्या भी कर सकते हैं, अथवा दूसरे को भी मार सकते हैं , कुछ भी हो सकता है। इसलिए ऐसा करना उचित नहीं है। इसकी अपेक्षा दूसरे व्यक्ति को सावधान करें , बताएं, कि आपका व्यवहार मुझे पसंद नहीं आ रहा, आप अपने व्यवहार में परिवर्तन करें. जैसे आप 100% मेरी इच्छा से नहीं जी सकते, ऐसे ही मैं भी 100% आपकी इच्छा से नहीं जी सकता. आपकी अपनी इच्छाएँ हैं, और मेरी अपनी इच्छाएँ हैं। जैसे आपको अपनी इच्छा अनुसार जीने का अधिकार है, ऐसे ही मुझे भी मेरी इच्छाओं के अनुसार जीने का अधिकार है। इसलिये मेरे साथ आप उचित व्यवहार करें, अर्थात ऐसा व्यवहार करें, जो कानून के या शास्त्रों के अनुकूल हो। 
           ऐसे यदि आप कहेंगे, तो आपको भी समस्या नहीं होगी और सामने वाला व्यक्ति भी अपनी गलती को सुधार लेगा।


- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक 


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