धूप

ठंडी मौसम  देखते,  सेंके थोड़ी धूप ।
रोके रहते देखिये , बना पड़ोसी भूप ।।
बना पड़ोसी भूप , करे जो समाज सेवा ।
होते झंझट मुष्ठ , तभी वह खाता मेवा ।।
जब आंगन दीवार , बने तब सब्जी मंडी।
ऊँची मकान टेक,  लगी क्या  हमको ठंडी ।।


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