धर्म अपना निभाना शुरु किजिए

*गज़ल*
बहर-212 212 212 212
काफ़िया- आला, रदीफ़- करो।


★★★★★★★★★★★


*मतला~~~*
राह दिखती नहीं अब उजाला करो।
प्रभु करूँ ये विनय मन शिवाला करो।।


*शे'र~~~*
रात कटती नहीं दिन गुजरता नहीं।
मन ये' भटके नहीं कुछ कृपाला करो।


ज्ञान की ज्योति मन में जला दो मे'रे।
सत्य का भान हो पथ निराला करो।।


दीन दुखियों की' सेवा करूँ उम्र भर।
नाथ ऐसी दया हे दयाला करो।।


आदमी-आदमी का न दुश्मन बनें।
बैर की भावना प्रेम हाला करो।।


दुख मिटे डर हटे हो अमन चैन बस।
दम्भ की भावना हिय निकाला करो।।


*मक़ता~~~*
क्रोध की आग में जल रहे आशियाँ।
नेह बरसात कर प्रीत आला करो।।


   आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
07दिसम्बर2017


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